संवेदनाशून्यता और बेशर्मी की हद है ये बाजार। कॉरपोरेट प्रॉफिट उन जांबाज लुटेरों की लूट की तरह है जो यूरोप के देशों से जहाजों में निकल कर शेष महाद्वीपों से लाया करते थे। आज तकनीक के आविष्कार ने उस लूट को जरा सभ्यता का जामा पहना दिया है। तलवार और तोप के स्थान पर कागज और कैल्क्यूलेटर या लैपटॉप आ गए हैं। दुनिया भर की आर्थिक विषमता इस बात का सबूत है। इधर जुही चावला का कुरकुरे का एक विज्ञापनऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने आईपीओ में शेयरों के दाम अधिक रखने पर चिंता जताई है। सेबी के चेयरमैन सी बी भावे में शुक्रवार को मुंबई में मर्चेंट बैंकिंग उद्योग पर आयोजित एक समारोह में कहा कि इनवेस्टमेंट बैंकरों को आपसी होड़ में पब्लिक इश्यू में जारी शेयरों के दाम बढ़ाने के बजाय निवेशकों के हितों का भी ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब बहुत सारे इश्यू आ रहे हों और बाजार अच्छा हो तोऔरऔर भी

बीमा कंपनियां दुनिया भर में अगले तीन सालों में मोबाइल और इंटरनेट पर अपनी मार्केटिंग पर 8.4 करोड़ डॉलर (करीब 400 करोड़ रुपए) खर्च करेंगी। यह निष्कर्ष है आईटी सलाहकार कंपनी एक्सेंचर के ताजा सर्वे का। कंपनी ने इस सर्वे में तमाम देशों की 125 बड़ी बीमा कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की। इनमें अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका व एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ ही भारत की भी बीमा कंपनियां शामिल थीं। सर्वे का कहना है कि बीमाऔरऔर भी

देश की सबसे बडी एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर सही ही दावा करती है कि हर तीन में से दो भारतीय उसका कोई न कोई ब्रांड रोजाना इस्तेमाल करते हैं। बाकी एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, नहीं तो वो भी करती। चाय से लेकर सूप, आटे से लेकर पानी, साबुन से लेकर शैंपू, घर की सफाई से लेकर दांतों की सफाई तक… कहां नहीं है हिंदुस्तान लीवर। लेकिन लोगों के दिमागऔरऔर भी