बिन बारातियों के दूल्हे

संवेदनाशून्यता और बेशर्मी की हद है ये बाजार। कॉरपोरेट प्रॉफिट उन जांबाज लुटेरों की लूट की तरह है जो यूरोप के देशों से जहाजों में निकल कर शेष महाद्वीपों से लाया करते थे। आज तकनीक के आविष्कार ने उस लूट को जरा सभ्यता का जामा पहना दिया है। तलवार और तोप के स्थान पर कागज और कैल्क्यूलेटर या लैपटॉप आ गए हैं। दुनिया भर की आर्थिक विषमता इस बात का सबूत है।

इधर जुही चावला का कुरकुरे का एक विज्ञापन चल रहा है जिसमें दूल्हे के पीछे बाराती नहीं हैं, बैंड नहीं है। बेचारा स्टीरियो टेप रिकॉर्डर गोद में लेकर घोड़ी पर अकेला ही चला आ रहा है दुल्हन के दरवाजे पर। स्टॉक मार्केट की तेजी बिन बारातियों के दूल्हों का विवाह लग रहा है।

आम निवेशक समझदार है इस बार। इस लूट में वे अपनी पॉकेट नही कटने दे रहे। इंडिया शाइनिंग की मीडिय़ा चिल्लाहट को अनसुना कर के चुनावों में नेता को यह अवाम धूल चटा सकती है तो क्या कॉर्पोरेट इससे अछूता रहेगा?

सरकार देश भर में मार्च पास्ट करवा रही है। मार्च पास्ट तो इसलिए किया जाता है कि आम नागरिक को भरोसा हो कि सरकार नागरिक सुरक्षा के लिए पर्याप्त सक्षम है। पर ये कश्मीर, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र, असम के मार्च पास्ट तो दमनकारी व गलत तत्वों को संरक्षण देने के लिए किए जा रहे हैं। आम नागरिक को सरकार आतंकित कर रही है ताकि कोई अन्याय के खिलाफ जुबान न खोले।

जिज्ञासा प्रकट करना और अटकलें लगाना मानव मन की दो कमजोरियां है। मीडिया की बेशर्मी देखो। अपने आकाओं (जिनसे विज्ञापन की आय होती है) के खिलाफ कुछ नही बोलते। हालांकि उन आकाओं के राजनीतिक चमचों व सरकारी अफसरों (जिनके हिस्से खुरचन तक भी पूरी नहीं आती) की पैंट उतारने में ये कोई कसर नही छोड़ते क्योंकि इनको पता है कि पब्लिक ने तो तालियाँ पीटनी है, ओपिनियन पोल की प्रीमियम दरों पर एसएमएस करने हैं।

‘वालस्ट्रीट’ की हिन्दी डबिंग तो अपने ही खिलाफ जंग को न्योता देना है। अत: बैटमैन की सिक्वल हिन्दी में लाते रहो।

सुरेश कलमाड़ी और राजा को निशाना बनाने पर निर्माण के ठेके और ब्रॉडबैंड के ठेके भी प्रतिद्वन्द्वियों से हस्तांतरित होते रहेंगे। आपस की दोस्ती भी बनी रहेगी। वेयरहाउस शेयरिंग भी तो करनी है कॉस्ट कटिंग के लिए। आपस में एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलने से तो सब के लाभ खतरे में पड़ जाएंगे।

के एम अब्राहम शेयर ट्रेडिंग के लिए लाइसेंस नही दे रहा तो क्या हुआ। सेबी उसके बाप की थोड़े ही है, उसकी जगह कोई और साइन करेगा। जय शेयर बाजार (मत दो भारत में कैसिनो के लाइसेंस, हम बाजार को ही कैसिनो बना डालेंगे)! जय कॉरपोरेट (कॉरपोरेट रिस्पॉंसिबलिटी न स्वेच्छा से निभाएंगे, न कानून बनने देंगे)!

सुरेश कुमार शर्मा (लेखक भास्कर पराविद्या शोध संस्थान के सचिव हैं। चुरु, राजस्थान में ठिकाना है और अपना ब्लॉग भी चलाते हैं)

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