मन की पतंग
मन की करें तो अच्छा लगता है। लेकिन क्या अच्छा है क्या बुरा, यह मन नहीं जानता। मन तो ड्रग एडिक्ट का भी और भोजनभट्ट का भी। मन को संस्कारित करना पड़ता है। इसे छुट्टा छोड़ देना घातक है।और भीऔर भी
मन की करें तो अच्छा लगता है। लेकिन क्या अच्छा है क्या बुरा, यह मन नहीं जानता। मन तो ड्रग एडिक्ट का भी और भोजनभट्ट का भी। मन को संस्कारित करना पड़ता है। इसे छुट्टा छोड़ देना घातक है।और भीऔर भी
हम शरीर में न जाने कितने रोगाणु लिए फिरते हैं। न जाने कितने वाइरस व बैक्टीरिया के कैरियर बने रहते हैं। इनसे निपट लेती है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता। लेकिन रुग्ण विचारों से निपटने का जिम्मा हमारा है।और भीऔर भी
हम मन ही मन तमाम टोटके करते रहते हैं। तंत्र, मंत्र, अंधविश्वास। सिक्का सीधा पड़ा तो जीतेंगे। फूल खिला तो काम हो जाएगा। ये सब कुछ और कुछ नहीं, अनिश्चितता को नाथने के हमारे मूल स्वभाव का हिस्सा हैं।और भीऔर भी
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