परमार्थ में ही स्वार्थ
2010-06-03
हम लेना ही लेना चाहते हैं, देना नहीं चाहते। यह आदिम सोच है। सामाजिक निर्भरता के युग में दूसरों को देने से ही खुद को मिलता है। कारोबार का मंत्र भी यही है। दूसरे को आपसे कुछ मिलेगा, तभी तो वह आपको देगा।और भीऔर भी