आप मानें या न मानें, हमारे पूरे हिंदी समाज में ज्ञान का डेफिसिट, ज्ञान का घाटा पैदा हो गया है। सरकार घाटे को उधार लेकर पूरा करती है। लेकिन ज्ञान का घाटा केवल उधार लेकर पूरा नहीं किया जा सकता। उधार के ज्ञान से प्रेरणा भर ली जा सकती है। उसका पुनर्सृजन तो अपने ही समाज और अपनी ही मिट्टी व भावभूमि से करना पड़ता है। हिंदी में लोगबाग कविताएं ठोंक कर लिखते हैं। लेकिन जहां गद्यऔरऔर भी