खून के आंसू रुला डालते हैं ये मुए टीपीए
2010-09-15
रमेश की व्यथा-कथा जारी है। कितने अफसोस की बात है कि उसने मेडिक्लेम करा रखा था जिसमें कैशलेस हास्पिटलाइजेशन की सुविधा थी। फिर भी बीमारी का खर्च उसने अपनी जेब से भरा। इसके बाद भी टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) उसके क्लेम दिलाने में आनाकानी करता रहा। टीपीए बीमा कंपनी और बीमित के बीच का दलाल होता है जनाब। और, दलालों की हरकत और फितरत तो आप जानते ही होंगे। तो, अब कहानी आगे की… रमेश ने हफ्तेऔरऔर भी
