हर कोई किसी न किसी रूप में बलवान है, सशक्त है। बस, हम ही हर रूप में कमजोर हैं, अशक्त हैं। ये सोच भयंकर अवसाद का लक्षण है। कोई दवा हमें इससे बाहर नहीं निकाल सकती। लड़ने का मनोबल और अपने अनोखे गुणों का भरोसा ही इसका इलाज है।और भीऔर भी

आपने दो लाख का मेडिक्लेम लिया है तो जरूरी नहीं कि अस्पताल में भर्ती होकर कराए गए इलाज का पूरा क्लेम आपको मिल जाए। कवर में हर खर्च की सीमा है। जैसे, आप कवर का अधिकतम 1% ही अस्पताल के कमरे पर खर्च कर सकते हैं। कमरे का किराया अगर 3000 रुपए/दिन है तो आपको 2000 रुपए ही मिलेंगे। यही नहीं, ऐसा होने पर आपका सारा कवर इसी अनुपात में घट जाएगा। अगर आपके इलाज पर कुलऔरऔर भी

कैंसर की एक दवा सेतुक्सिमैब का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया है कि कैंसर कोशिकाएं इलाज से बचने के लिए उन्हें चकमा देती हैं और राह बदल लेती हैं। ये कोशिकाएं ट्रैफिक जाम में फंसी कारों की तरह व्यवहार करती हैं। जब एक रास्ता बंद हो जाता है तो वे वैकल्पिक रास्ता तलाश लेती हैं और उनका बढ़ना बदस्तूर जारी रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नई खोज से ट्यूमर में दवा प्रतिरोध कोऔरऔर भी

डायबिटीज के मरीजों की संख्या में तीव्र वृद्धि के बीच दुनिया भर की कंपनियां इसके इलाज और इसकी रोकथाम के लिए नई दवाओं के विकास पर जोर दे रही हैं। दो साल के भीतर नई विकसित की जा रही दवाओं की संख्या करीब ढाई गुना हो गई है। अमेरिका की अग्रणी दवा अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों के संघ, फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन (पीएचआरएमए) के मुताबिक 2010 में उसकी सदस्य कंपनियों द्वारा डायबिटीज या मधुमेह कीऔरऔर भी

सार्वजनिक अस्पतालों को चलाने के लिए सरकार को सब्सिडी देनी पड़ती है, जबकि निजी अस्पताल महंगे होने के बावजूद लोगों से पटे रहते हैं और करोड़ों का मुनाफा कमाते हैं। यह मानसिकता और पद्धति का सवाल है। ब्रिटेन में सब्सिडी चलती है तो हेल्थकेयर सिस्टम पिटा पड़ा है। जर्मन में स्वास्थ्य बीमा चलता है तो हेल्थकेयर सिस्टम चकाचक है। भारत में सब घालमेल है। लेकिन ‘जान है तो जहान है’ और परिजनों के लिए कुछ भी करनेवालेऔरऔर भी