पत्थर में न तो इच्छा होती है और न द्वेष। उसे न सुख होता है, न दुख। न ही पत्थर अपना रूप बनाए रखना चाहता है, जबकि ये अनुभूतियां ही प्राणियों की पहचान और उनके जीवन का मूल तत्व हैं।और भीऔर भी

ज्ञान ऐसा मनोरंजन है जो हमारे अंदर उन अनुभूतियों के रंध्र खोल देता है जो पहले हमारी पहुंच में थीं ही नही। आम मनोरंजन हमें निचोड़ डालता है, जबकि ज्ञान हमारी संवेदनाओं को उन्नत बनाता है।और भीऔर भी

हम बाहरी संसार से वास्ता जितना बढ़ाते हैं, हमारा भाव संसार उतना ही बढ़ता जाता है। खुशियों और अनुभूतियों के नए सूत्र मिलते हैं। इसलिए हर नई जानकारी को लपक कर पकड़ लेना चाहिए।और भीऔर भी