सरकारी सर्वेक्षण में सही जानकारी न देने पर होगी छह माह जेल की सजा

अगर कोई व्यक्ति केंद्र से लेकर पंचायत स्तर तक के निकाय द्वारा किए जा रहे सर्वेक्षण में मांगी गई सूचना देने से मना करता है या गलत सूचना देता है तो उसे छह महीने की सामान्य जेल या जुर्माना या दोनों की ही सजा हो सकती है। यह प्रावधान केंद्र सरकार सरकार द्वारा अधिसूचित सांख्‍यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008 के अंतर्गत सांख्‍यिकी संग्रहण नियमावली, 2011 में किया गया है।

बता दें कि संसद  ने 7 जनवरी, 2009 को सांख्‍यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008 को स्वीकार किया था। यह 11 जून, 2010 से लागू हुआ। यह अधिनियम बनने से सांख्‍यिकी संग्रहण अधिनियम, 1953 निरस्‍त हो गया। अधिनियम की नियमावली अर्थात सांख्‍यिकी संग्रहण नियमावली, 2011 को 16 मई, 2011 को अधिसूचित किया गया। इसके प्रावधानों को सरकार की तरफ से शुक्रवार 10 जून 2011 को सार्वजनिक किया गया।

अधिनियम में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति सूचना देने से मना करता या इसकी उपेक्षा करता है तो उस 1000 रुपए का दंड लगाया जाएगा। कंपनियों के बारे में दंड की रकम 5000 रुपए है। यही नहीं, सूचना देने की बाध्‍यता यहीं समाप्‍त नहीं हो जाती। अगर संबंधित व्‍यक्‍ति दोष सिद्ध होने की तिथि से 14 दिन पूरे होने के बाद भी सूचना देने से मना करता है अथवा इसकी उपेक्षा करता है तो उस पर पहले दिन को छोड़कर तब तक आगे और 1000 रुपए (कंपनियों के मामले में 5000 रुपए) प्रतिदिन का जुर्माना लगाया जा सकता है, जब तक कि वह सूचना दे नहीं देता।

इस अधिनियम में मौखिक साक्षात्‍कार और इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से जवाब भरने के साथ-साथ आंकड़े जुटाने की सारी पद्धतियों का प्रावधान है। आंकड़े जुटाने का काम आउटसोर्स करने पर संग्रहीत आंकड़ों की पर्याप्‍त गोपनीयता व उचित सुरक्षा का प्रावधान है। इसके अंतर्गत किसी व्‍यक्‍ति से प्राप्‍त सूचना को व्‍यक्‍ति के पहचान संबंधी विवरण को छिपाए बगैर जाहिर करने की इजाजत नहीं है।

दूसरे, इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी सूचनादाता द्वारा दी गई सूचना का उपयोग इस अधिनियम के अंतर्गत अभियोजन व सांख्‍यिकीय प्रयोजन के अलावा किसी और काम के लिए नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्‍दों में, अन्‍य किसी भी कानून के तहत अभियोजन के लिए संग्रहीत सूचना का उपयोग साक्ष्‍य के रूप में नहीं किया जा सकता है।

गौरतलब है कि इस अधिनियम में न सिर्फ औद्योगिक व वाणिज्‍यिक प्रतिष्‍ठानों बल्‍कि व्‍यक्‍तियों और परिवारों से भी आर्थिक, जनसांख्‍यिकी, सामाजिक, वैज्ञानिक व पर्यावरण संबंधी पहलुओं से जुड़े आंकड़े जुटाने का प्रावधान है। इसके जरिए केन्‍द्र व राज्‍य सरकारों, संघशासित प्रदेश प्रशासन और पंचायतों व नगरपालिकाओं जैसे स्‍थानीय निकायों तक को किसी भी प्रकार की सांख्‍यिकी/आंकड़े जुटाने का अधिकार दिया गया है।

कई-कई सरकार निकाय एक ही जैसा सर्वेक्षण न करें, इसे भी रोकने की व्यवस्था की गई है। सरकार का मानना है कि सर्वेक्षणों के दोहराव से संसाधनों का अपव्‍यय होता है और विरोधाभासी आंकड़े मिलते हैं। यह अधिनियम केन्‍द्र सरकार को दोहराव रोकने के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है। इस अधिनियम के अंतर्गत बनाई गई नियमावली में केन्‍द्र व हर राज्‍य/संघशासित प्रदेश में नोडल अधिकारी नामित करने का प्रावधान है। नोडल अधिकारी संबंधित मंत्रालयों को अनावश्‍यक दोहराव रोकने के बारे में कदम उठाने का सुझाव देता है।

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