हमारी बाजार नियामक संस्था, सेबी और गरीब रिटेल निवेशक कितने असहाय हैं, इसे इंडिया फॉयल्स के स्टॉक से समझा जा सकता है। हम पहले भी लिख चुके हैं कि किस तरह इंडिया फॉयल्स के नए प्रवर्तक एस डी (Ess Dee) ग्रुप ने इसके शेयर खुले बाजार में 20 रुपए के भाव पर बेचे और इसका भाव 5 रुपए या उससे से भी नीचे ले गए। इसके बाद कुछ शेयरधारक कंपनी प्रबंधन से मिले तो उन्हें समझा दिया गया कि उन्हें इस स्टॉक को बेचकर निकल लेना चाहिए क्योंकि कंपनी में कुछ बचा नहीं है। बता दें कि कंपनी का विलय प्रवर्तकों की दूसरी लिस्टेड कंपनी एस डी एल्यूमीनियम में करने को हरी झंडी मिल चुकी है। विलय में इंडिया फॉयल्स के 1285 शेयरों पर एस डी एल्यूमीनियम का एक शेयर देना तय हुआ है। इस तरह इंडिया फॉयल के शेयर का मूल्य महज 35 पैसे निकला। प्रमुख आर्थिक अखबार हिंदू बिजनेस लाइन ने इसके बारे में लिखा भी था।
रिटेल निवेशक थक-हार गए और घाटा खाकर भी इंडिया फॉयल को बेचकर निकल गए। तकरीबन तीन महीने तक शांत पड़ा यह स्टॉक अचानक अब जाग उठा है और 4.5 रुपए से 20-20 फीसदी के दो सर्किट लगने के बाद 32 लाख शेयरों के वोल्यूम के साथ 7.12 रुपए पर पहुंच गया है। अब किसी के पास इसके ज्यादा शेयर तो पड़े नहीं हैं। इसमें भारी-भरकम वोल्यूम बाजार में इसके लिए खासतौर पर चल रहे धंधे से खड़ा किया गया है। इस धंधे में महज 20-25 फीसदी सौदे डिलीवरी के लिए होते हैं और बाकी वोल्यूम गिने-चिने 40-50 खातों से बना लिया जाता है। ऐसा दूसरे तमाम शेयरों में भी होता है। यह आज का ढर्रा बन गया है इतना कि सभी इसे मान चुके हैं। सारा धंधा इतना चाक-चौबंद होता है कि खेल करनेवाले एक भी ट्रेडर को पकड़ना लगभग असंभव है। वोल्यूम खड़ा करने के इस धंधे में प्रति शेयर सौदे का रेट 8 से 11 पैसे है।
क्या आपको लगता है कि शेयरधारक स्टरलाइट के नीचे से इसी तरह दरी खींच सकते हैं, जिस तरह प्रबंधन ने इंडिया फॉयल्स के साथ किया है? अमीर निवेशक जो चाहें, कर सकते हैं। लेकिन जिस तरह का खेल भारतीय बाजार में बेधड़क चल रहा है, उसमें गरीब निवेशक केवल छाती पीटकर रो सकता है। फिर भी हम कहते हैं कि हमारे यहां रिटेल और माइनॉरिटी शेयरधारक सुरक्षित हैं, पूरी हिफजत से हैं? वक्त आ गया है कि ऐसे प्रावधान किए जाएं ताकि रिटेल निवेशक बिना किसी भय-बाधा के कॉरपोरेट के चेहरे को बेनकाब कर सके।
खैर, मैं अगले 12 महीनों तक इंतजार करूंगा और देखूंगा कि इस स्टॉक में क्या होता है क्योंकि हो सकता है कि एस डी विलय को निरस्त कर दे या इंडिया फॉयल्स को बीआईएफआर से बाहर ले लाए या इसकी जमीन को निकालकर अलग कंपनी में डाल दें या दूसरा कुछ भी इसमें हो सकता है। केवल एक बात जो नहीं हो सकती है, वह यह कि इंडिया फॉयल्स में 200 करोड़ रुपए से ज्यादा लगानेवाला एस डी ग्रुप इसके मूल्यांकन को गिराकर मात्र 6 करोड़ रुपए पर ले आए। ऐसा होना नामुमकिन है। इसके बजाय एस डी ग्रुप ने वही किया है, जिसकी इजाजत उसे बाजार नियामक देता है। वह बाकायदा घोषित करते हुए कुछ शेयर 20 रुपए से शुरू करके तब तक बेचता रहा, जब तक शेयर के भाव 5 रुपए पर नहीं आ गए। साबित कर दिया कि इंडिया फॉयल्स में कुछ बचा नहीं है। और, अब सारी प्रक्रिया उसने उल्टी दिशा में मोड़ दी है। किसे परवाह है कि आपने फायदा उठाया या घाटा खाया? क्या आपके पास कोर्ट में एस डी ग्रुप से लड़ने की ताकत है? जो भी हो, अगर यह स्टॉक अगले दो सालों में भी 30 रुपए के पार चला जाता है तो मैं इस धरती का सबसे खुश इंसान हूंगा क्योंकि इससे मुझे अपना ट्रैक-रिकॉर्ड साफ-सुधरा रखने में मदद मिलेगी।
यह जीता-जागता उदाहरण है इस बात का कि हमारे कॉरपोरेट अल्पसंख्यक (प्रवर्तकों व संस्थाओं से भिन्न) निवेशकों को कैसे छलते हैं। ऐसे ही यूनाइटेड क्रेडिट पहले अपने शेयरों को खारिज करने का प्रस्ताव ला चुकी है। कंपनी कानून में इसकी इजाजत नहीं है तो उसने इसके लिए कोर्ट से आदेश हासिल कर लिया। स्टील स्ट्रिप्स इंफ्रा ने पहले एसएबी के साथ विलय की घोषणा की, फिर उसे निरस्त किया और फिर विलय की बात की। इसने माइनॉरिटी शेयरधारकों को भारी नुकसान हुआ। फिर भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। ताजा मामला विजन कॉरपोरेशन का है जिसने अपना खाता 9 महीने से 12 महीने का कर दिया है और शेयर का भाव धड़ाम से नीचे आ गया। हालांकि इसके पास तीन टीवी चैनलों का लाइसेंस है जिसका भारी मूल्य है। फिर भी उसका कृत्य अक्षम्य है। हमारी बाजार नियामक संस्था, सेबी गड़बड़ी करनेवाले ब्रोकरों और ट्रेडरों के खिलाफ तो कार्रवाई करती रही है। लेकिन कंपनियों के खिलाफ वह क्यों नही कुछ करती? ऐसा तो रावण के साथ होता था जो दस सिर और बीस आंखों के बावजूद सच नहीं देख पाता था।
मैं बाजार को लेकर मंदी की धारणा नहीं पाल रहा। न ही भुतहा भविष्यवाणियों से चिंतित हूं। आज सेटलमेंट का आखिरी दिन था और इस सेटलमेंट के साथ ही सब कुछ दफ्न हो जाएगा। हम कल से नई पारी की शुरुआत करेंगे।
हिटलर का सेनापति गोयबल्स कहा करता था कि बार-बार बोलने से झूठी बात भी सच बन जाती है। लेकिन यह सच नहीं है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)