सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकार से रियायती कीमत पर मिली जमीन पर निर्मित निजी अस्पतालों को समाज के कमजोर तबके को मुफ्त इलाज मुहैया कराना ही होगा और वे इस संबंध में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं।
न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन और ए के पटनायक की खंडपीठ ने गुरुवार को निजी क्षेत्र के इन अस्पतालों से कहा है कि उन्हें अपने बाह्यरोगी विभाग (ओपीडी) में कमजोर वर्ग के 25 फीसदी लोगों का मुफ्त इलाज करना होगा। साथ ही उन्हें भर्ती किए जानेवाले मरीजों के लिए रखे गए बेड का 10 फ़ीसदी गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए आरक्षित रखना होगा। अदालत ने कहा कि अस्प्ताल में आनेवाले गरीब मरीजों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
अदालत ने रियायती कीमत पर सरकार से जमीन प्राप्त करने वाले अस्पतालों में गरीबों को मुफ्त इलाज मुहैया कराने के दिल्ली हाईकोर्ट के 2007 के आदेश के खिलाफ दस निजी अस्पतालों की याचिका खारिज कर दी है। इस याचिका में हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके जरिए उसने सरकार और अस्पतालों के बीच हुए भूमि पट्टा समझौते के मुताबिक गरीब रोगियों का मुफ्त इलाज करने का निर्देश दिया था।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ऐसे 37 अस्पताल हैं जिन्हें सरकार ने रियायती दर पर जमीन आवंटित की है। इनमें से 27 अस्पताल गरीबों का मुफ्त इलाज कर रहे है।