पीएसएल लिमिटेड का शेयर कल एनएसई, बीएसई दोनों ही स्टॉक एक्सचेंजों में 52 हफ्ते की तलहटी पर पहुंच गया। वो बीएसई (कोड – 526801) में 114.15 रुपए और एनएसई (कोड – PSL) में 113.60 रुपए तक गिर गया। ऐसा क्यों हुआ, नहीं पता। हां, कंपनी ने महीने भर पहले 29 सितंबर को इतना जरूर बताया था कि सितंबर 2005 में जारी 4 करोड़ डॉलर के जीरो कूपन विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांडों (एफसीसीबी) की अदायगी 7 सितंबर 2010 से पहले होनी थी। लेकिन उससे काफी पहले ही इसमें से 3.75 करोड़ डॉलर निर्धारित प्रपत्रों में बदले जा चुके हैं। बाकी बचे 25 लाख डॉलर के बांडों के एवज में उसके मूल एजेंट डॉयचे बैंक, लंदन की मार्फत 3 सितंबर 2010 को 35.11 लाख डॉलर अदा कर दिए गए हैं।
इस सूचना में ऐसा कुछ भी नकारात्मक नहीं था कि उसके शेयर तलहटी पर पहुंच जाएं तो इससे फर्क भी खास नहीं पड़ा। 29 सितंबर को उसका शेयर 116.75 पर बंद हुआ था और 14 अक्टूबर को 126.40 रुपए तक जाने के बाद कल 27 अक्टूबर को 114.40 रुपए पर बंद हुआ है। फिर गिरावट की वजह क्या है? कंपनी को 28 सितंबर को ही 565 करोड़ रुपए का नया ऑर्डर मिला है जिसमें से 200 करोड़ रुपए का ऑर्डर इंडियन ऑयल की तरफ से पारादीप-रायपुर-रांची की करीब 400 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन परियोजना के लिए है।
पीएसएल लिमिटेड कंस्ट्रक्शन और इंजीनियरिंग उद्योग की कंपनी है। वह मुख्य रूप से एचएसएडब्ल्यू (हेलिकन सब्मर्ज्ड आर्क वेल्डेड) या एच-सॉ पाइप बनाती है और खुद को देश में इन पाइपों को सबसे बड़ा निर्माता बताती है। ये पाइप पानी से लेकर पेट्रोलियम पदार्थों की आवाजाही में इस्तेमाल होते हैं। कंपनी टर्नकी प्रोजेक्ट यानी औरों के लिए किसी परियोजना को शुरू से लेकर चालू होने तक तैयार करने का काम भी करती है। उसके ग्राहकों में स्टील अथॉरिटी (सेल), गैस अथॉरिटी (गेल) व इंडियन ऑयल से लेकर एस्सार ऑयल और एल एंड टी तक शामिल हैं। कंपनी भारत के अलावा अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात में भी मौजूद है। दो महीने पहले अगस्त में गलत खबर छप गई थी कि उसे गेल से स्टील पाइपों को लिए 1000 करोड़ रुपए का ऑर्डर मिला है। लेकिन कंपनी ने फौरन इसका खंडन किया और बताया कि यह ऑर्डर केवल 28.39 करोड़ रुपए का है।
कंपनी ने वित्त वर्ष 2009-10 में 2810.66 करोड़ रुपए की आय पर 88.30 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 10.41 फीसदी था। इस साल जून 2010 की तिमाही में उसकी आय 507.57 करोड़ और शुद्ध लाभ 13.56 करोड़ रुपर रहा है। इस दौरान उसका ओपीएम भी बढ़कर 14.18 फीसदी हो गया है। कंपनी ने अभी सितंबर 2010 तिमाही के नतीजे घोषित नहीं किए हैं। अब तक घोषित नतीजों के अनुसार उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 14.83 रुपए है और उसका शेयर 7.71 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जबकि इसी उद्योग की कंपनी एल एंड टी का पी/ई अनुपात 33.39, एरा इंफ्रा का 14.33 और पटेल इंजीनियरिंग का 69.97 चल रहा है।
कंपनी के शेयर की बुक वैल्यू भी 159.39 रुपए है यानी बाजार में उसके मौजूदा शेयर भाव से लगभग 45 रुपए ज्यादा। ऐसे में इस कंपनी के स्टॉक में निवेश क्यों न किया जाए, वाकई नहीं समझ में आता। हो सकता है कि कोई बारीक बात हो जिसने इसके शेयरों को तलहटी तक पहुंचा दिया गया हो। शेयर खरीद से ज्यादा बिक्री के हो जाने पर गिरते हैं तो देखते हैं कौन इसे बेच रहा है। सुंदरम बीएनबी परिबास के पास दो साल पहले तक इसके 5.18 फीसदी शेयर हुआ करते थे। अब घटकर 3.03 फीसदी रह गए हैं। उसने कंपनी के 65,818 शेयर बीते सितंबर माह में ही बेचे है।
कंपनी की कुल इक्विटी 53,46 करोड़ रुपए है जिसका 39.25 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। 7.45 फीसदी शेयर एफआईआई और 15.07 शेयर डीआईआई या घरेलू म्यूचुअल फंडों व बीमा कंपनियों वगैरह के पास हैं। कंपनी ने 30 सितंबर 2010 तक शेयरधारिता की ताजा स्थिति घोषित नहीं की है, जबकि नियमतः अब तक ऐसा हो जाना चाहिए था। इससे लगता तो है कि कंपनी के साथ कुछ लोचा है। लेकिन क्या है, पता नहीं। अंत में एक बात और। एच-सॉ पाइप के धंधे में होड़ जमकर चलती है। पिछले साल इसमें दाम घटाकर बाजार हथियाने की जबरदस्त मार चली थी। उद्योग के प्रमुख खिलाड़ियों में जिंदल सॉ, मान इंडस्ट्रीज, वेलस्पन, रत्नामणि मेटल्स और प्रतिभा इंडस्ट्रीज शामिल हैं।