प्रेसिजन वायर्स (बीएसई कोड – 523539, एनएसई कोड – PRECWIRE) देश में कॉपर वाइंडिंग वायर बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है। पंखे से लेकर तमाम बिजली के उपकरणों के भीतर चुंबक पर तांबे के जो लिपटे तार आप ने देखे होंगे, वही कॉपर वाइंडिंग वायर हैं। कंपनी दो दशक पुरानी है, जबकि उसके प्रवर्तक तीन दशक से इस धंधे में हैं। उनके ग्राहकों में बड़े व मध्यम स्तर की इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रकिल कंपनियां शामिल हैं। वह अपनी बिक्री का तकरीबन 15 फीसदी हिस्सा निर्यात से हासिल करती है। कंपनी की तीन फैक्ट्रियां सिलवासा, दादर नगर हवेली और पालेज (गुजरात) में हैं।
प्रेसिजन वायर्स का शेयर अभी 129.55 रुपए पर चल रहा है, जबकि उसकी बुक वैल्यू 143.08 रुपए है। कंपनी की ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 20.34 रुपए है। इस तरह उसके शेयर का पी/ई अनुपात इस समय केवल 6.42 है, जबकि इसकी समकक्ष कंपनियों के शेयर 15-20 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं। जाहिर है कि कंपनी का शेयर अभी की ताकत के आधार पर 200 रुपए तक जा सकता है। कंपनी लगातार लाभांश भी देती रही है। पिछले तीन सालों में उसने 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 3.60 से लेकर 4.40 रुपए का लाभांश दिया है।
कंपनी का प्रबंधन काफी पारदर्शी है और उसकी कई विस्तार योजनाओं पर काम चल रहा है। इससे कंपनी के भविष्य का खाका बनेगा। अभी की स्थिति की बात करें तो वित्त वर्ष 2009-10 में 632.58 करोड़ रुपए की बिक्री पर 22.62 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। चालू वित्त वर्ष में जून 2010 की तिमाही में उसकी बिक्री 203.17 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 6.98 करोड़ रुपए रहा है। कंपनी का धंधा कच्चे माल कॉपर की कीमतों से काफी प्रभावित होता है। इसलिए वह इसके उतार-चढ़ाव के असर को निष्प्रभावी करने के लिए बराबर हेजिंग करती रहती है जिसमें उसे कभी-कभी नुकसान भी हो जाता है। जैसे, 2009-10 में उसे हेजिंग के चलते 4.88 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
कंपनी की इक्विटी 11.56 करोड़ रुपए है, जिसमें 30 सितंबर 2010 तक की अद्यतन जानकारी के मुताबिक प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 59.65 फीसदी है। डीआआई ने इसमें मामूली निवेश कर रखा है, जबकि एफआईआई पूरी तरह गायब हैं। इसके कुल शेयरधारकों की संख्या 9266 है, जिसमें से दो सबसे बड़े शेयरधारक क्वांटम सिक्यूरिटीज (1.19 फीसदी) और विनोद राजेंद्रनाथ सेठी (1.73 फीसदी) हैं।