झीलों के शहर उदयपुर (राजस्थान) में आजादी के साल 1947 में गठित कंपनी पी आई इंडस्ट्रीज के साथ इस समय कहीं कुछ तो है, जो ठीक नहीं है। कंपनी अपनी वर्किंग कैपिटल या कार्यशील पूंजी जरूरतों के लिए पॉलिमर इकाई बेचने के साथ-साथ अपनी अचल संपत्तियां भी गिरवी रख रही है। इसके लिए उसने अपने शेयरधारकों के लिए पोस्टल बैलट 12 जनवरी को तैयार किया था। इसे 17 फरवरी तक शेयरधारकों ने मंजूरी दे दी है। इस बीच हफ्ते भर पहले ही कंपनी ने बताया है कि क्रिसिल ने बैंक सहूलियतों – मसलन वर्किंग कैपिटल, कैश क्रेडिट, टर्म लोन, लेटर ऑफ क्रेडिट के लिए रेटिंग का स्तर पहले से ऊपर कर दिया है। कुल 250 करोड़ रुपए के ऋणों की रेटिंग कंपनी ने क्रिसिल से कराई थी।
वैसे, कृषि रयासनों व रिसर्स से जुड़े कस्टम सिंथेसिस के कारोबार में लगी इस कंपनी की दिसंबर तिमाही एकदम चौकस रही है। उसकी शुद्ध बिक्री साल भर पहले की इसी तिमाही के 132.7 करोड़ से 42.4 फीसदी बढ़कर 189.4 करोड़ रुपए हो गई, जबकि शुद्ध लाभ 10.33 करोड़ रुपए से 47.2 फीसदी बढ़कर 15.21 करोड़ रुपए हो गया। पिछले पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने 541.7 करोड़ रुपए की शुद्ध बिक्री पर 40.95 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 48.55 रुपए है और बीएसई (कोड – 523642) में कल के बंद भाव 526.55 रुपए पर इसका शेयर मात्र 10.85 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू 169.56 रुपए है।
इन वित्तीय आंकड़ों के आधार पर पी आई इंडस्ट्रीज के स्टॉक को बहुत सस्ता व अच्छा तो नहीं, लेकिन ठीकठाक माना जा सकता है। आप कहेंगे कि जब तक सैकड़ों अच्छे स्टॉक इस समय सस्ते में मिल रहे हों तो किसी ठीकठाक स्टॉक की तरफ क्यों देखा जाए? इस पर पी आई इंडस्ट्रीज के चेयरमैन सलिल सिंघल का कहना है कि पोलिमर इकाई को बेचने से कंपनी अपने मूल व्यवसाय पर अधिक केंद्रित कर सकेगी। दूसरे उसने सोनी कॉरपोरेशन के साथ रिसर्च के लिए भागीदारी की है। फिर कंपनी के पास कस्टम सिंथेसिस बिजनेस के लिए 25 करोड़ डॉलर (करीब 1125 करोड़ रुपए) के अग्रिम ऑर्डर पड़े हुए हैं।
फिलहाल यही लगता है कि कंपनी खुद को ट्रिम व स्लिम बनाने में लगी है। इसलिए जो भी तात्कालिक दिक्कतें हैं, वे कल की मजबूती की बुनियाद बन जाएंगी। कंपनी ने 2005 में दस रुपए के शेयर पर 1.80 रुपए का लाभांश दिया था। उसके बाद पांच साल के सन्नाटे के बाद 2010 में फिर दो रुपए प्रति शेयर यानी 20 फीसदी का लाभांश दिया है।
इस बीच कंपनी अप्रैल 2009 में एक पर एक और जुलाई 2010 में दो पर एक शेयर का बोनस दे चुकी है। इस तरह बोनस शेयर देने के बाद कंपनी की मौजूदा इक्विटी 11.19 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। इसका 28.74 फीसदी हिस्सा ही पब्लिक के पास है। बाकी 71.26 फीसदी शेयर प्रवर्तकों के पास हैं और अद्यतन जानकारी के अनुसार उन्होंने अपना एक शेयर भी गिरवी नहीं रखा है।
अंत में बस एक बात कहनी है कि इस समय टेक्निकल एनालिस्टों को छोड़ दें तो बाकी सभी दिग्गज लोग यही सलाह दे रहे हैं कि बाजार एकदम गिरा हुआ है और इसका फायदा उठाते हुए निवेशकों को लंबे समय के लिए अच्छे शेयर खरीद लेना चाहिए। घरेलू खपत वाले सेक्टर – जैसे फार्मा, फर्टिलाइजर व एफएमसीजी कंपनियां निवेश का अच्छा मौका दे रही हैं। साथ ही आईटी कंपनियां भी दीर्घकालिक निवेश के लिए अच्छी हैं। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता है कि जब खरीदने का इतना अच्छा मौका है तो कौन लोग हैं जो बेचे जा रहे हैं और बाजार पूरी तरह बिकवाली की गिरफ्त में आ गया है? क्या दीर्घकालिक निवेश की बात हाथी के दिखाने के दांत की तरह का एक सब्जबाग है? बाजार में लांग टर्म कुछ नहीं होता, बस शॉर्ट टर्म ही चलता है?