देश पर लगता है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग का जुनून सवार है। आपको यकीन नहीं आएगा कि वित्त वर्ष 2001-02 से 2012-13 के बीच के ग्यारह सालों में इक्विटी फ्यूचर्स व ऑप्शंस (एफ एंड ओ) में रोज़ का औसत टर्नओवर 71.18 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ता हुआ 420 करोड़ से 1,55,048 करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। अभी कल, 18 अक्टूबर 2013 को एनएसई के एफ एंड ओ सेगमेंट का टर्नओवर 1,67,558 करोड़ रुपए रहा है। इसमें भी 1,23,082 करोड़ रुपए यानी 73.45 फीसदी टर्नओवर इंडेक्स ऑप्शंस का रहा है। वहीं, स्पॉट या कैश सेगमेंट का टर्नओरवर इसी दिन इसका बमुश्किल 10 फीसदी (12,352 करोड़ रुपए) रहा है।
तमाम आम निवेशक व ट्रेडर निफ्टी ऑप्शंस में जमकर खेलते हैं और जमकर घाटा उठाते हैं। जैसे, मेरे एक दोस्त का रोना है कि उसके ब्रोकर ने बगैर उससे पूछे करीब महीने भर पहले दिसंबर के निफ्टी-5000 पुट ऑप्शंस के दो लॉट (100 शेयर) 133 रुपए के भाव से खरीद लिए। अब इसका भाव 14.70 रुपए हो चुका है। वह अपने ब्रोकर को गालियों पर गालियां दिए जा रहा है। लेकिन ब्रोकर के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। वो तो उसे 88 फीसदी से ज्यादा का फटका लगाकर मस्त पड़ा है। कानूनन मेरा दोस्त कुछ भी नहीं कर सकता क्योंकि डीमैट एकाउंट खुलवाते समय हर ब्रोकर क्लाएंट से पावर ऑफ एटॉर्नी पर साइन करवा लेता है। खैर, यह उदाहरण इसलिए कि डेरिवेटिव्स, खासकर ऑप्शंस में ट्रेडिंग पूंजी कितनी तेज़ी से डूबती है।
मजे की बात है कि हमारी पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी की तरफ से ऑप्शंस को और हवा देने की तैयारी हो रही है। इसी गुरुवार, 17 अक्टूबर को सेबी द्वारा जारी एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि सिक्यूरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) बढ़ाने के बाद ऑप्शंस पर फ्यूचर्स का दबदबा कम हो गया है और अब स्पॉट या कैश बाज़ार फ्यूचर्स व ऑप्शंस बाज़ार पर भारी पड़ रहा है। रिपोर्ट की सिफारिश है कि ऑप्शंस बाज़ार को बढ़ावा देने के लिए कॉल व पुट ऑप्शंस पर एसटीटी घटा देना चाहिए।
बता दें कि एसटीटी 1 अक्टूबर 2004 से हमारे शेयर बाज़ार में लागू किया गया और इसे स्पॉट सौदों के साथ-साथ फ्यूचर्स व ऑप्शंस पर भी लगाया गया। तब यह फ्यूचर्स बेचनेवाले से भाव का 0.01 फीसदी और ऑप्शंस के खरीदार (अगर वह ऑप्शंस का सौदा पूरा करता है) पर स्ट्राइक रेट का 0.01 फीसदी रखा गया। 1 जून 2008 से यह टैक्स ऑप्शंस के प्रीमियम पर लगाया जाने लगा। बाद में टैक्स की दर 0.017 फीसदी हुई और फिर 0.125 फीसदी।
सेबी की रिसर्च टीम ने ऑप्शंस की लोकप्रियता पर गौर करने के लिए दो तरह के ऑप्शस पर फोकस किया। ये हैं एटीएम (At The Money) जिसमें स्ट्राइक मूल्य स्पॉट भाव के बराबर होता है; और एनएम (Near The Money) जिसमें स्ट्राइक मूल्य स्पॉट मूल्य के बराबर नहीं, बल्कि उसके आसपास होता है। टीम ने निफ्टी के साथ-साथ दस स्टॉक्स के स्पॉट व डेरिवेटिव मूल्यों के अध्ययन के बाद पाया कि हाल के सालों में एटीएम के कॉल व पुट ऑप्शंस का वोल्यूम का हिस्सा ऑप्शंस के कुल वोल्यूम में घटता गया है। इसे दूर करने के लिए रिपोर्ट का कहना है कि एटीएम व एनएम ऑप्शंस पर एसटीटी की दर खत्म नहीं, तो कम से कम घटा दी जानी चाहिए।
इस टीम में शामिल तीन सदस्य हैं – भुवनेश्वर के ज़ेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में फाइनेंस के प्रोफेसर बनीकांत मिश्रा, सेबी में आर्थिक व नीति विश्लेषण विभाग (डीईपीए) के संयुक्त निदेशक सरत मलिक और इसी विभाग के सहायक निदेशक लाल्टू पोरे। इन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि निफ्टी व दस चुनिंदा स्टॉक्स के स्पॉट, फ्यूचर्स व ऑप्शंस भावों पर गौर करने के बाद पाया गया कि जहां स्पॉट या कैश बाज़ार का ज़ोर फ्यूचर्स व ऑप्शंस पर बढ़ता जा रहा है, वहीं एसटीटी लगाने के बाद फ्यूचर्स बाज़ार का दबदबा ऑप्शंस बाज़ार पर तेज़ी से घटा है। लेकिन संबंधित ऑप्शंस का ट्रेडेड-मूल्य समय के साथ बढ़ता गया है।
इसलिए उनकी सिफारिश है कि हेजिंग के मकसद के लिए की गई उन एटीएम व एनएम कॉल व पुट ऑप्शंस की खरीद पर एसटीटी या तो खत्म कर दिया या उसकी दर घटा दी जाए, जिनसे संबंधित शेयरों को एक्सपायरी के दिन या ठीक उससे पहले खरीदा या बेचा गया हो।
ये सारी बातें आपको दुरूह लग रही होंगी। लेकिन डेरिवेटिव्स का मामला सचमुच इतना ही जटिल है। इसे समझना किसी भी आम निवेशक के लिए असंभव नहीं तो बेहद मुश्किल ज़रूर है। और, शेयर बाज़ार के सफलतम निवेशक वॉरेन बफेट बहुत पहले कह चुके हैं कि हमें वो सौदे कतई नहीं करने चाहिए जिन्हें हम अच्छी तरह समझ नहीं सकते। उन्होंने यह भी कहा है कि जिस कंपनी का बिजनेस हमें समझ में न आए, उसके शेयरों में हमें कतई निवेश नहीं करना चाहिए। बाकी क्या कहा जाए! आप खुद समझदार हैं।