बीएसई में कल कुल 2950 प्रपत्रों या स्क्रिप्स में ट्रेडिंग हुई। इनमें से चार ने अब तक का ऐतिहासिक उच्चतम स्तर हासिल कर लिया। ये हैं – तिलक फाइनेंस, कृष्णा वेंचर्स, इंडियन ब्राइट और सुलभ इंजीनियर्स। ये चारों ही टी ग्रुप की कंपनियां हैं जिनमें कोई सट्टेबाजी नहीं चलती और 100 फीसदी डिलीवरी लेना जरूरी है। दूसरी तरफ कल 175 कंपनियों के शेयर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। इससे एक इशारा तो यह मिलता है कि इस गिरावट में सट्टेबाजी का हाथ जरूर है। दूसरा यह कि बहुत सारी अच्छी कंपनियां इस समय जमीन तक झुककर हमें सलाम कर रही हैं। हमें उनका सलाम स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि अभी न तो कयामत आई है कि दुनिया खत्म हो जाए और न ही भारत की विकासगाथा का पटाक्षेप होने जा रहा है।
जमीन तक झुककर सलाम करनेवाली एक ऐसी ही कंपनी है, सीईएससी। आर पी गोयनका समूह की कंपनी है। भाइयों में बंटवारे के बाद इसकी कमान संजीव गोयनका के हाथ में है। 1899 से बिजली के धंधे में है। कोयले के खनन व बिजली उत्पादन से लेकर बिजली वितरण का काम करती है। कोलकाता व हावड़ा के 24 लाख ग्राहकों को बिजली सप्लाई करती है। कंपनी जमी-जमाई है। धंधा दुरुस्त है। भविष्य अच्छा है। कंपनी की विस्तार योजनाएं पटरी पर हैं। लेकिन इस समय कोई ऐसा ट्रिगर नहीं है जो इसके शेयर में धमाका कर सके। ट्रिगर है तो बस इतना कि इसका शेयर कल, 19 दिसंबर 2011 को 52 हफ्ते के नए न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया।
कंपनी का दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 500084) में 215.50 रुपए और एनएसई (कोड – CESC) में 216.25 रुपए पर बंद हुआ है। लेकिन दिन में यह 205 रुपए तक गिर गया जो पिछले साल भर की इसकी नई तलहटी है। पिछले तीन सालों में यह नीचे में 180 रुपए और पिछले पांच सालों में 165 रुपए तक जा चुका है। वैसे, 19 तारीख का इस शेयर के साथ खास रिश्ता नजर आता है। 19 जनलरी 2010 को 448 रुपए का शिखर बनाया था। 19 जनवरी 2011 को 315 रुपए पर तब तक के 52 हफ्तों की तलहटी बनाई और अब 19 दिसंबर 2011 को 205 रुपए पर नई तलहटी छू ली।
हमने सबसे पहले 20 जनवरी 2011 को इस कंपनी के बारे में लिखा था, “शेयर कल (19 जनवरी 2011) नई तलहटी बनाने के बाद बीएसई में 322.75 रुपए पर बंद हुआ है। लेकिन इसकी बुक वैल्यू इससे ज्यादा 326.59 रुपए है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 37.40 रुपए है और उसका शेयर इससे मात्र 8.63 गुना या पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि इससे ज्यादा पुख्ता आधार किसी कंपनी में निवेश का हो सकता है।” लेकिन यह पुख्ता आधार कोई काम नहीं आया। उसके कुछ दिन पहले 7 जनवरी 2011 को हासिल 384.90 रुपए का स्तर अब उसका 52 हफ्तों का शिखर बन गया है।
कंपनी की प्रति शेयर बुक वैल्यू अब भी 344.45 रुपए है। सितंबर 2011 की तिमाही को मिलाकर उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस पहले से थोड़ा घटकर 35.78 रुपए पर आ गया है। लेकिन शेयर पिछले 11 महीनों में 33 फीसदी टूट चुका है। फिलहाल 6.02 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। समझ में नहीं आता कि जो शेयर सेंसेक्स व निफ्टी से ज्यादा टूटा हो, उसे निवेश के काबिल समझा जाए या नहीं? फंडामेंटल पहलू कहते हैं कि इसे लंबे समय के लिए लेना सही रहेगा। लेकिन लंबा समय मतलब कितना? कहीं कंपनी में कोई झोल तो नहीं जो उसका शेयर पिटता जा रहा है?
यह सच है कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 अभी तक कंपनी के लिए अच्छा नहीं रहा है। जून तिमाही में शुद्ध लाभ मात्र 0.91 फीसदी बढ़ा था तो सितंबर तिमाही में यह 26.45 फीसदी घट गया। ऐसा नहीं है कि कंपनी पर ऋण का भारी बोझ हो और अचानक उसे ब्याज के मद में ज्यादा धन चुकाना पड़ा हो। उसका ऋण-इक्विटी अनुपात 1.58 है। कंपनी पर 5576.93 करोड़ रुपए का ऋण है, जिसे 10,279.79 करोड़ रुपए की आस्तियों को देखते हुए ज्यादा नहीं कहा जाएगा। प्रवर्तकों ने कंपनी की इक्विटी में अपने 52.53 फीसदी हिस्से का 10.92 फीसदी भाग (कंपनी की कुल इक्विटी का 5.73 फीसदी) गिरवी रखा हुआ है। लेकिन यह स्थिति तो पिछले साल भर से ऐसी ही है। फिर इतना क्यों गिर गया इसका शेयर?
जाहिर है कि यह पूरे माहौल का शिकार हुआ है। छह महीने या साल भर में जब भी बाजार मंदड़ियों के शिकंजे से बाहर निकलेगा, सीईएससी जैसे शेयर 30-40 फीसदी बढ़त आसानी से हासिल कर सकते हैं। लेकिन याद रखें कि बाजार हमारी या आपकी सदिच्छा से नहीं चलता। यहां खरीदने-बेचने वालों की वास्तविक रस्साकसी में ही शेयरों के भाव तय होते हैं। फंडामेंटल्स में मजबूत कंपनी का शेयर भी बाजार में पिट सकता है और कमजोर कंपनी का शेयर भी कुलांचे भर सकता है। भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था के अविकसित व विकलांग शेयर बाजार का यह ऐसा सच है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। लेकिन क्या करें? जीना यहां, मरना यहां। इसके सिवा जाना कहां…