अपने उद्योग विरोधी रुख के चलते आलोचनाओं के घेरे में रहने वाले पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने देश के तीन राज्यों में बाजार आधारित उत्सर्जन प्रणाली की प्रायोगिक परियोजना की शुरुआत करते हुए कहा कि सरकार उद्योग जगत के लिए बिना नियामकों के स्व-नियमन की व्यवस्था चाहती है। इस परियोजना में कार्बन क्रेडिट की ट्रेडिंग की व्यवस्था की गई है।
रमेश ने राजधानी दिल्ली में गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाड़ु के लिए इस प्रायोगिक परियोजना की औपचारिक शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘यह नियमन की दिशा में उठाया गया छोटा, लेकिन एकदम नया कदम है। भारत को पर्यावरण के लिए सख्त नियमन की जरूरत है। लेकिन यह नियमन बिना नियामकों की फौज के भी हो सकता है।’’ उन्होंने कहा कि हमारे सामने चुनौती यह है कि हम नियमन की एक ऐसी व्यवस्था बनाएं जो बाजार आधारित हो और जिसमें जबरदस्ती नियम थोपे जाने के बजाय स्व-नियमन पर जोर दिया जाए।
उनका कहना था कि उनकी इस पहल से ‘बाजारवालों’ को यकीन आ जाएगा कि जिस पर्यावरण मंत्रालय को बाजार-विरोधी और उद्योग-विरोधी बताया जाता है, वह भी पर्यावरण को बचाते हुए बाजार का विकास करना चाहता है। गुजरात, महाराष्ट्र व तमिलनाडु को चुनने की वजह यह है कि यहां औद्योगिकीकरण के चलते सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है।
रमेश ने ‘वायु प्रदूषण कम करने के लिए बाजार आधारित उत्सर्जन परियोजना पर राष्ट्रीय तकनीकी विचार-विमर्श’ विषयक कार्यक्रम में कहा कि भारत इस अवधारणा पर किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते आगे नहीं बढ़ रहा है, बल्कि बाजार आधारित उत्सर्जन परियोजना का संबंध स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण में कमी लाने और प्रदूषण के चलते जनता की सेहत पर पड़ने वाले असर को कम करना है। अमेरिका, कनाडा और चिली ने भी इस तरह की व्यवस्था अपनाई और इसके बेहतर नतीजे भी सामने आए हैं।
इस परियोजना का कार्यान्वयन गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाड़ु के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करेंगे और इसमें तकनीकी मदद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय मुहैया कराएगा। यह प्रायोगिक परियोजना दो साल चलेगी।