मनुस्मृति तक में जिक्र समुद्री बीमा का

पिछले दिनों कानून व व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों को मुंबई के पास समुद्री सीमा में कुछ कुख्यात सोमालिया डाकुओं या जल-दस्युओं को धर दबोचने में बड़ी कामयाबी मिली। इन डाकुओं से पूछताछ में कई खतरनाक रहस्य उजागर हुए हैं। इसके अलावा पिछले साल दिसंबर में भी एक भारतीय जहाज जल-दस्युओं के शिकंजे में फंस गया था।

बढ़ता आतंक: गत दिनों भी एक भारतीय कंपनी का मालवाहक जहाज अदन की खाड़ी से गुजरते हुए कुख्यात सोमालियाई डाकुओं के कब्जे में आते-आते बचा। जहाज के कप्तान ने बताया कि अदन की खाड़ी से गुजरते वक्त जहाज का पीछा एक स्पीड बोट पर सवार समुद्री डाकुओं ने किया। वे डाकू अत्याधुनिक हथियारों व दूरसंचार उपकरणों से लैस थे। पर ऐसे मौके पर जहाज के कप्तान ने बुद्धिमानी से काम लिया और वह डाकुओं को गच्चा देने में कामयाब हो गया।

समुद्री डकैती की वारदात: पिछले कुछ समय से दुनिया भर के जहाजरानी यानी शिपिंग उद्योग को समुद्री डाकुओं ने काफी सताया है। तकरीबन रोज दुनिया के किसी न किसी हिस्से से यह खबर जरूर आती है कि फलां कंपनी के मालवाहक पोत का समुद्री डाकुओं ने अपहरण कर लिया है या फिरौती के रूप में इतनी राशि वसूलने के बाद डाकुओं ने अपने चंगुल से बंधक बनाए गए जहाज व उसके चालक दल को मुक्त किया। 2010 में दुनिया भर में समुद्री डकैती की 306 वारदातें हुईं जिसमें से आधी से ज्यादा के पीछे सोमालिया के समुद्री डाकुओं का हाथ रहा। इस साल के पहले महीने में तीन मालवाहक जहाजों का अपहरण इन डाकुओं ने सिचीलीज के पास से किया जिन्हें फिरौती की भारी-भरकम रकम वसूल करने के बाद रिहाई मिली।

बहुउपयोगी मरीन इंश्योरेंस: इन समुद्री डाकुओं के जोखिम से बचने के लिए मरीन इंश्योरेंस बड़े काम का है। इसके अलावा यात्रा के दौरान खराब मौसम, समुद्री डकैती, राहजनी, दुश्मन द्वारा जहाज पर हमला व उसका अपहरण, जहाज डूबना या नष्ट हो जाना, दो जहाजों की परस्पर टक्कर, अग्निकांड जैसे हालात से भी जहाज मालिक के हितों की रक्षा करता है मरीन इंश्योरेंस।

बीमा का प्राचीनतम रूप: मरीन इंश्योरेंस बीमा का सबसे पुराना रूप है। मनुस्मृति तक में इसका जिक्र किया गया है। मनु ने साफ रूप से बता दिया था कि सामुद्रिक बीमा-मरीन इंश्योरेंस में भारतीय लोग औसत व अंशदान में भरोसा करते थे और उसके अनुसार बीमा व्यवसाय करते थे। बीमा का मूल सिद्धांत भी यही है। दरअसल, उस समय यात्रा की सफलता मौसम पर ज्यादा आधारित रहती थी। सामुद्रिक व स्थलीय यात्राएं जोखिम से भरी थी। सामुद्रिक डकैती व राहजनी का अधिक प्रकोप था। कभी-कभी दुश्मनों द्वारा जहाजों का अपहरण कर लिया जाता था, गहरे समुद्र में डूब जाते थे तथा अनेक प्रकार के अन्य जोखिम होते थे जिनको एक व्यक्ति अकेले सहन नहीं कर सकता था। कई व्यक्ति मिलकर उसकी हानि को पूरा करते थे।

मरीन रिस्क का इंश्योरेंस: मरीन इंश्योरेंस सामुद्रिक जोखिम का बीमा करता है। सामुद्रिक जोखिम में जहाज का टकराना, शत्रुओं का हमला, आग लग जाना, जहाज का डूबना आदि आता है। इन जोखिमों से संपत्ति की क्षति, नष्ट व गायब होने की संभावना रहती है, जहाज, माल किराया आदि की पूर्णतया या आंशिक हानि हो सकती है और दूसरे पक्ष के दायित्व का जोखिम भी हो सकता है।

जोखिम के दो भाग: जोखिम के दो भाग हैं। एक, सामुद्रिक जोखिम जिसमें एक बंदरगाह से अंतिम बंदरगाह तक की जोखिम शामिल होती है और दूसरा है स्थलीय जोखिम। स्थलीय जोखिम में विक्रेता के स्थान से लेकर बंदरगाह तक की जोखिम आती है।

हर जोखिम का कवच: साधारण बीमा कंपनियों के मरीन इंश्योरेंस गुलदस्ते में हर जोखिम का कवच होता है। इन पॉलिसियों ने जोखिम के हर पहलू को कवर किया है। सिंगल वेसेल पॉलिसी, फ्लीट पॉलिसी, नेम्ड पॉलिसी, फ्लोटिंग पॉलिसी, ऑल रिस्क पॉलिसी, टाइम पॉलिसी, वॉयज पॉलिसी, मिक्स्ड पॉलिसी के साथ मरीन इंश्योरेंस के तहत जहाज बीमा, माल बीमा, भाड़ा बीमा के साथ लायबिलिटी इंश्योरेंस, लैंड रिस्क, वैल्यूड पॉलिसी, अन वैल्यूड पॉलिसी, मरीन-कम-इरेक्शन पॉलिसी, इनलैंड ट्रांजिट पॉलिसी व करेंसी पॉलिसी आदि का भी समावेश है। इन सारी पॉलिसियों को मरीन इंश्योरेंस के विस्तार व शिपिंग कंपनियों की बढ़ती जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है।

सभी जरूरतों की पूर्ति: जानकारों का मानना है कि आज के जमाने में मरीन इंश्योरेंस इतना विकसित हो गया है कि शिपिंग कंपनियों की बीमा संबंधी सारी जरूरतों की पूर्ति होने लगी है। शिपिंग कंपनियां इस उद्योग से जुड़े सभी खतरों के खिलाफ बीमा कवच का लाभ उठा सकती हैं।

इसमें भी अपहरण व फिरौती बीमा: मरीन इंश्योरेंस में भी किडनैपिंग व रैन्सम पॉलिसी (अपहरण व फिरौती बीमा) का भी प्रावधान है। दरअसल आजकल समुद्री डाकुओं का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इस तरह की बढ़ती घटनाओं की वजह से अब शिपिंग कंपनियां स्टैंडर्ड हल व मशीनरी कवर के साथ अतिरिक्त रूप से अपहरण व फिरौती बीमा पॉलिसी भी तेजी से लेने लगी हैं। आज के समय में यह उन कंपनियों की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है जिनके जहाज डाकुओं के हमले के लिए कुख्यात अदन की खाड़ी से गुजरते हैं।

हालात के अनुसार प्रीमियम: इस अपहरण व फिरौती बीमा पॉलिसी का प्रीमियम साप्ताहिक आधार पर तय किए जाते हैं क्योंकि इसमें हर-पल, हर दिन हालात बदलते रहते हैं। बीमा कंपनियां इन हालातों के अनुसार प्रीमियम में कमी या बढ़ोतरी करती हैं।

अमूमन बीमा कवर कितना: जहाजों की अपहरण व फिरौती बीमा पॉलिसी अमूमन १ मिलियन डॉलर की होती है। जिसका प्रीमियम हर सप्ताह 10,000-15,000 डॉलर होता है। यह पॉलिसी वॉयज-टू-वॉयज बेसिस पर होती है न कि अन्य बीमा पॉलिसियों की तरह सालाना आधार पर। यानी कि आज के जमाने में मरीन इंश्योरेंस काफी काम का है।

राजेश विक्रांत (लेखक मुंबई में कार्यरत बीमा प्रोफेशनल हैं)

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