सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को स्वास्थ्य बीमा पर भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। प्रीमियम के रूप में हासिल हर 100 रुपए पर उन्हें 140 रुपए क्लेम व अन्य मदों में खर्च करना पड़ता है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने मंगलवार को राज्यसभा में लिखित बयान में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इसी वजह से इन कंपनियों को मेडिक्लेम में दी जानेवाली कैशलेस सुविधा को सीमित करना पड़ा है।
बता दें कि इस समय देश में 23 साधारण बीमा कंपनियां सक्रिय हैं। इसमें से एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी और एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन के अलावा बाकी 21 कंपनियां स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करवा रही हैं। लेकिन इसका 60 फीसदी हिस्सा अकेले सार्वजनिक क्षेत्र की चार साधारण बीमा कंपनियां – नेशनल इंश्योरेंस, न्यू इंडिया एश्योरेंस, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और ओरिएंटल इंश्योरेंस, पूरा करती हैं। इसलिए स्वास्थ्य बीमा में छाई गड़बड़ियों का खामियाजा निजी क्षेत्र की कंपनियों से ज्यादा इन्हें भुगतना पड़ रहा है।
वित्त राज्यमंत्री मीणा का कहना है कि सरकारी साधारण बीमा कंपनियां टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) के जरिए बीमाधारकों को कैशलेस हॉस्पिटलाइजेशन की सुविधा देती रही हैं। लेकिन टीपीए व अस्पतालों की मिलीभगत से कंपनियों को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। इसके चलते इन कंपनियां का बढ़ता घाटा काफी चिंता का विषय बन गया है। दूसरी तरफ अस्पताल बीमाधारक से एक ही बीमारी के लिए इतना पैसा ले लेते हैं कि दूसरी बीमारियों के लिए उनके बीमित राशि में से कुछ बचता ही नहीं।
इस समस्या को सुलझाने के लिए सरकारी बीमा कंपनियों ने 1 जुलाई 2010 से चुनिंदा अस्पतालों की व्यवस्था पीपीएन (प्रेफर्ड प्रोवाइडर नेटवर्क) शुरू की है। इस समय इस नेटवर्क में देश के चार बड़े शहरों के 449 अस्पताल शामिल हैं। इसमें से दिल्ली में 163, मुंबई में 121, चेन्नई में 84 और बैंगलोर में 81 अस्पताल हैं। इस तरह सरकारी साधारण बीमा कंपनियों ने कैशलेस सुविधा बंद नहीं की है, बल्कि उसे बीमाधारकों के हित में व्यवस्थित कर दिया है ताकि अस्पताल अनाप-शनाप खर्च न ले सकें। पीपीएन में शामिल सभी अस्पतालों की सूची बीमा कंपनियों की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
गौरतलब है कि पिछले ही शनिवार 14 अगस्त को सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों के साझा मंच जीआईपीएसए (जनरल इंश्योरर्स –पब्लिक सेक्टर- एसोसिएशन ऑफ इंडिया) की तरफ से अपना अलग टीपीए बनाने के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इस तरह बननेवाले टीपीए की पूंजी 200 करोड़ रुपए रखी गई है, जिसमें सरकारी कंपनियां 26 फीसदी इक्विटी भागीदारी करेंगी। इन कंपनियों को लगता है कि इससे अभी तक होनेवाली टीपीए की धांधली पर रोक लग सकेगी। बता दें कि स्वास्थ्य बीमा गैर-जीवन बीमा का दूसरा सबसे बड़ा और उभरता हुआ क्षेत्र है। इसका बाजार अभी 8305 करोड़ रुपए का है। वह भी तब, जबकि अभी देश की केवल 3 फीसदी आबादी तक स्वास्थ्य बीमा पहुंच सका है।