अपने शेयर बाज़ार में हर्षद मेहता निपट गए। केतन पारेख का चांद भी डूब गया। लेकिन राकेश झुनझुनवाला का सितारा मरते दम तक चमकता रहा, दौलत बढ़ती रही। इसकी दो साफ वजहें हैं। एक तो यह कि राकेश ने कभी ठगी या फ्रॉड का सहारा नहीं लिया, न ही उन्होंने कभी फिक्सर का काम किया, जबकि हर्षद मेहता से लेकर केतन पारेख तक हमेशा सिस्टम को मैन्यूपुलेट करते रहे, उससे खेलते रहे। वहीं, झुनझुनवाला समय व हालात के अनुरूप बराबर अपना गियर और रणनीति अपडेट करते रहे। दूसरी वजह यह है कि उन्होंने छोटी अवधि की ट्रेडिंग और लम्बे समय के निवेश में से किसी एक को नहीं, बल्कि दोनों को चुना और इनके बीच वाजिब संतुलन बनाकर चले। उधार के धन से भी निवेश व ट्रेडिंग की, लेकिन कभी डिफॉल्ट नहीं किया। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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