मोदी सरकार बार-बार दंभ भरती है कि वह संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के 33% प्रतिनिधित्व का नारी शक्ति वंदन अधिनियम ले आई। वह इसे महिलाओं के सशक्तिकरण का बड़ा कदम बताती है। लेकिन इसमें ऐसे पेंच फंसा दिए हैं कि यह पांच साल बाद 2029 के आम चुनावों में भी शायद ही लागू हो पाए। वहीं, उसकी नीतियों से हो यह रहा है कि देश की श्रमशक्ति में नारी शक्ति की भागीदारी घटती जा रही है। गांवों में को घर के कामकाज में महिलाएं हाथ बंटाने के कारण रोज़गार-याफ्ता गिन ली गई हैं। लेकिन शहरी इलाकों में श्रमशक्ति में महिलाओं की भागादारी मात्र 24% है। गांवों व शहरों को मिला दें, तब भी भारत के श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी महज 33% है, जबकि दुनिया का औसत 50% है। यहां तक कि मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में महिलाओं की श्रम भागदारी 37% है। नारी शक्ति वंदन की बात करनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इस बात पर ज़रा-सा भी शर्म नहीं आती कि देश में 15 से 49 साल उम्र की लड़किया व महिलाएं खून की कमी की बीमारी एनीमिया की शिकार हैं। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की दिसंबर 2023 में आई रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2022 में महिलाओं से अपराध के 4.45 लाख मामले दर्ज किए गए। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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