मुद्रास्फीति रोकने का ज़िम्मा रिजर्व बैंक का है। उसके पास इसे निभाने के लिए एकमात्र साधन मौद्रिक नीति है। ब्याज दर बढ़ाकर वह धन महंगा करता है, सीआरआर बढ़ाकर मुद्रा का प्रवाह कम करता है। लेकिन अपने यहां खाद्य वस्तुओं की महंगाई सरकारी नीतियों से बढ़ती है। कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय भाव घटे। लेकिन केंद्र ने उसका लाभ उपभोक्ता तक पहुंचने नहीं दिया। एक्साइज़ बढ़ाकर उसने आठ साल में करीब 25 लाख करोड़ रुपए का टैक्स बजट से बाहर कमा लिया। इसमें रिजर्व बैंक का क्या दोष? लेकिन सरकार सारा मामला उसी पर ढेल देती है। वैसे, मौद्रिक नीति बनानेवाली छह सदस्यीय समिति में तीन सदस्य केंद्र सरकार के नुमाइंदे होते हैं, रिजर्व बैंक गवर्नर भी उसी का है तो कुल छह में से चार। आखिर वह जिम्मेदारी से कैसे बच सकती है? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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