प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ का उनका नारा विश्व कल्याण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बन सकता है। लेकिन भारत की ज़मीनी हकीकत से वाकिफ कोई भी व्यक्ति सवाल उठा सकता है – किसका साथ, किसका विकास? पिछल नौ सालों में देश में आर्थिक व सामाजिक स्तर पर विषमता व वैमनस्य बढ़ता गया है। आबादी का निचला 50% राष्ट्रीय आय का मात्र 13% हासिल करता है। उसके पास देश की दौलत का महज 3% टुकड़ा है। पिछले एक साल में डॉलर में कमाई के लिहाज़ से भारत में 187 नए अरबपति बने, जबकि हमसे पांच गुना बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन में 128 अरबपति ही बने। मोदी जी नहीं बताते कि भारत आर्थिक विषमता में सियेरा लियोन और वियतनाम के बराबर खड़ा है। जो नारा देश में जुमला हो, वो विश्व कल्याण में कैसे चलेगा? जिस सरकार ने देश में हिंदू-मुस्लिम साम्प्रदायिक जहर को इतिहास के शिखर तक पहुंचा दिया हो, जो गरीबी व भुखमरी के दलदल के सच को छिपाने में लगी हो, उसका विश्वगुरु बनने की बात करना सत्यमेव जयते के भारत की भयंकर तौहीन है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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