संस्कृत में एक कथा भी है और कहावत भी, जिसमें कहा गया है – महाजनो येन गतः स पन्थाः, मतलब महापुरुष जिस रास्ते पर चलें, वही सही रास्ता है। यही कहावत पंचतंत्र की एक कथा – चार मूर्ख पंडित में यह अर्थ पकड़ लेती है कि जहां बहुत सारे लोग जा रहे हों, वही सही रास्ता है। हमारे शेयर बाज़ार में यही सोच भीड़ के पीछे चलने को सही रास्ता बता देती है। व्यक्ति ही नहीं, अनुभवी व संस्थागत निवेशक तक यही ‘सुरक्षित’ राह अपनाते हैं। चढ़े हुए स्टॉक्स को फटाक से खरीदना और अफरातफरी में खटाक से बेचकर निकल जाना। यह तरीका कुछ दिनों की ट्रेडिंग में सबसे कम रिस्की हो सकता है। लेकिन दो-चार साल से ज्यादा के निवेश के लिए यह नुकसानदेह ही नहीं, आत्मघाती भी हैं। आप किसी शेयर को 52 हफ्ते के शिखर के आसपास खरीदते हैं तो वह आखिर कितना बढ सकता है? अवधी व भोजपुरी में एक कहावत है कि मूस मोटइहैं लोढ़ा होइहैं, मतलब चूहा मोटा भी होगा तो बहुत हुआ तो लोढ़ा बन सकता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि चढ़े हुए बाज़ार में भी उन्हीं मजबूत कंपनियों के शेयर पकड़े जाएं जो किसी वजह से गिरे हुए हैं। आज तथास्तु में ऐसी कंपनी जिसका शेयर इस साल अब तक 6% से ज्यादा गिर चुका है…
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