सरकार ने लोकपाल बिल पर संयुक्त समिति की मांग मानी, अडंगा जारी

भ्रष्टाचार के खिलाफ अण्णा हजारे के आमरण अनशन को मिल रहा जन-समर्थन तीन दिनों में रंग लाने लगा है। दो दिन पहले तक इस अनशन को अनावश्यक व असामयिक बतानेवाली कांग्रेस के स्वर बदल गए हैं और यूपीए सरकार लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए संयुक्त समिति बनाने को तैयार हो गई है। वह इस पर भी तैयार है कि नया लोकपाल विधेयक संसद के आनेवाले मानसून सत्र में पेश कर दिया जाएगा।

लेकिन वह न तो इसकी अधिसूचना अभी जारी करने को तैयार है और न ही संयुक्त समिति की अध्यक्षता अण्णा हजारे को सौंपने को राजी है। आज, गुरुवार को सरकार की तरफ से मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने आंदोनकारियों के प्रतिनिधियों अरविंद केजरीवाल और स्वामी अग्निवेश के साथ दो दौर की बातचीत की। यह बातचीत सिब्बल के घर पर हुई।

इसके बाद सिब्बल ने संवाददाताओं को बताया, “हमने दो दौर में वार्ता की है। हम तकरीबन सभी मसलों पर सहमत हो गए। लेकिन दो मसलों पर सहमति नहीं बनी है। एक, संयुक्त समिति बनाने की आधिकारिक अधिसूचना जारी करना और दो, समिति का अध्यक्ष अण्णा हजारे को बनाना।”

इसके बाद मीडिया के बात करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अण्णा हजारे इसलिए अनशन नहीं कर रहे है कि उन्हें किसी समिति का अध्यक्ष बना दिया जाए। लेकिन जिस तरह का जन-समर्थन उनके साथ है और भ्रष्टाचार से लड़ने का जो उनका संकल्प है, उसे देखते हुए लोकपाल विधेयक का मसौदा बनाने की समिति की अध्यक्षता उन्हें ही सौंपी जानी चाहिए।

फिलहाल गतिरोध जारी है और 5 अप्रैल से शुरू हुआ अण्णा हजारे का बेमियादी अनशन भी जारी है। इस दौरान उनका वजन डेढ़ किलो घट गया है। हालांकि उनका कहना है कि उनकी सेहत को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वह अभी सात दिनों तक उपवास कर सकते हैं। हजारे के सहयोगियों ने बताया कि उनकी हालत ठीक है, हालांकि उनका रक्तचाप बढ़ गया है और वह कमजोरी भी महसूस कर रहे हैं।

हजारे ने सुबह यह भी कहा था कि सरकार की तरफ से बातचीत उन्हीं लोगों के साथ होनी चाहिए जिनके पास निर्णय लेने की शक्ति है, चाहे वह कांग्रेस अध्यक्ष हों अथवा प्रधानमंत्री। मंत्री समूह के बारे में हजारे ने कहा कि यह समूह बड़े निर्णय नहीं ले सकता। उनका मानना है कि ऐसी समिति का कोई मतलब नहीं है, जो बड़े फैसले नहीं ले सके।

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