वित्त मंत्री ने गठबंधन राजनीति का रोना रोया

केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि गठबंधन राजनीति के इस दौर में आपको अपने साथ बाकी लोगों को भी लेकर चलना होता है। इसलिए निर्णय प्रक्रिया में आपसी सहमति जरूरी है। बुधवार को अर्थशास्त्रियों के साथ बजट-पूर्व चर्चा में वित्त मंत्री ने कहा कि मौजूदा वित्त वर्ष काफी चुनौतियों से भरा रहा है। इस वर्ष मुद्रास्फीति की समस्या, राजकोषीय घाटे और सतत व समावेशी विकास को बनाए रखने जैसी समस्याओं का सामना करना पडा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता, यूरो जोन सकंट और विकसित देशों में आर्थिक मंदी की वजह से भारत समेत उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पडा।

फिर भी वित्त मंत्री ने आशा जताई कि मार्च के अंत तक मुद्रास्फीति 6 से 7 फीसदी के बीच होगी और आर्थिक वृद्धि दर सात फीसदी से अधिक रहने की संभावना है। श्री मुखर्जी के हुई इस बजट-पूर्व बैठक में ऑक्सस रिसर्च के डॉ. सुरजीत भल्ला, उद्योग संगठन फिक्की के नितिन देसाई व डॉ. राजीव कुमार, राष्ट्रीय लोक वित्त व नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के डॉ. सुदीप्तो मंडल व डॉ. एम गोविंद राव, भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) दिल्ली के भरत रामास्वामी, आदित्य बिड़ला समूह से अजित रानाडे, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की प्रो. रोहिणी सोमनाथन और मणिपुर के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज से प्रो. अमर यूमनाम खास रहे।

चर्चा में भाग लेते हुए अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया कि इस वर्ष बजट का प्रमुख उद्देश्य भारतीय विकास में घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दोनों निवेशकों के विश्वास की बहाली होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बजट में लोक-लुभावन उपायों पर खर्च घटाया जाना चाहिए और इन्हें लागू करने में होनेवाले लीकेज को खत्म किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में उन्होंने डीजल के डीकंट्रोल, डीजल कारों पर ज्यादा उत्पाद शुल्क और लाभार्थियों तक सीधे सब्सिडी पहुंचाने के लिए नकद हस्तांतरण प्रणाली का सुझाव दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *