झंझावात के बीच समता देती दृष्टि

जहां सब कुछ एकसाथ अलग-अलग दिशाओं में इतनी तेज़ी से बदल रहा हो, वहां हम पल-पल के भावावेश में फंसे रहे तो रिस्क लेने के बावजूद सही दांव कभी नहीं पकड़ सकते। इतने झंझावात के बीच अगर सही सूत्र पकड़ना है तो उसके लिए समता भाव को आत्मसात करना ज़रूरी है। न राग, न द्वेष। न दोस्ती, न दुश्मनी। जो जैसा है, उसे समभाव से वैसा ही देखने की अंतर्दृष्टि हासिल करनी पड़ेगी। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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