चुनावों में जमकर धन बहता है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकती, लेकिन माना जाता है कि एफपीआई या एफआईआई के माध्यम से भी इस दौरान राजनीतिक जोड़तोड़ में लगे भारतीय व्यापारियों व उद्योगपतियों का धन बाहर भेजकर वापस लाया जाता है। यूं तो चुनावों में काले-सफेद धन का भेद मिट जाता है। फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस दौरान कालेधन की वैतरिणी ज़ोर-शोर से बहती है। भरपूर विज्ञापन दिखाए और छापे जाते हैं तो मीडिया कंपनियों की आय व मुनाफा बढ़ जाता है और उनके शेयरों में चुनावों के दौरान खास चमक आ जाती है। चुनावों में शराब भी खूब चलती है तो इस दौरान शराब कंपनियों के शेयर भी चहकने-बहकने लगते हैं। शेयर बाज़ार के ट्रेडर को ये सारे पहलू चुनावी माहौल में ध्यान में रखने चाहिए। अब बुधवार की बुद्धि…
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