तेल कंपनियों के एफपीओ से पहले बढ़ सकते हैं डीजल के दाम

सरकार इंडियन ऑयल व ओएनजीसी के एफपीओ से पहले डीजल के दाम बढ़ाने पर विचार कर सकती है। यह कहना है तेल सचिव एस सुंदरेशन का। हालांकि उनका कहना था, “फिलहाल सरकार के लिए सारा बोझ उपभोक्ताओं पर डाल देना बेहद मुश्किल है। लेकिन हम यह मुद्दा मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह (ईजीओएम) के सामने रखेंगे।”

सुंदरेशन ने सोमवार को मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि इंडियन ऑयल व ओएनजीसी में और सरकारी हिस्सेदारी बेचने से पहले ईजीओएम की बैठक होगी जिसमें डीजल की कीमतें बढ़ाने पर गौर किया जाएगा। बता दें कि इंडियन ऑयल और ओएनजीसी का एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) चालू वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी, जनवरी से मार्च 2011 के बीच लाने की योजना है। इस समय इंडियन ऑयल में सरकार की हिस्सेदारी फीसदी और ओएनजीसी में फीसदी है।

उन्होंने कहा कि इस डीजल से मूल्य-नियंत्रण पूरी तरह हटा लेना मुमकिन नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी ज्यादा बढ़ चुके हैं। गौरतलब है कि सरकार इसी साल जून में पेट्रोल से मूल्य-नियंत्रण हटा चुकी है। साथ ही उसने उस समय डीजल, रसोई गैस और केरोसिन के दाम भी बढ़ा दिए थे। लेकिन इन पर मूल्य-नियंत्रण बरकरार रखा था।

असल में सरकार की सोच यह है कि सब्सिडी का बोझ कम करने और सरकार के खजाने की हालत बेहतर करने के लिए आखिरकार डीजल को भी नियंत्रण-मुक्त करना पड़ेगा। इसी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश एसयूवी (स्पोर्ट्स यूटिविटी वेहिकल्स) की आलोचना कर चुके हैं। उनका कहना है कि इन वाहनों को चलानेवाले रईस लोग डीजल पर सब्सिडी का बेजा फायदा उठा रहे हैं।

तेल सचिव सुंदरेशन ने कहा, “हमें आशा थी कि कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आएगी और उपभोक्ता पर छोटा-सा अतिरिक्त बोझ डालने का तर्कसंगत आधार तैयार हो जाएगा। लेकिन दुर्भाग्य से जून के बाद से ही कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं।”

शेयर बाजार के विश्लेषकों का कहना है कि अभी जिस तरह डीजल के मूल्य और कंपनियों व सरकार के बीच सब्सिडी का बोझ बांटने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, उसे देखते हुए दो सरकारी तेल कंपनियों के शेयरों की प्रस्तावित बिक्री से बड़े निवेशक विचलित हो सकते हैं। हालांकि डीजल के दाम बढ़ाने से मुद्रास्फीति बढ सकती है, लेकिन इससे डीजल की रिटेलिंग में होड़ बढ़ सकती है। इस समय देश में पेट्रोलियम तेलों की कुल मांग का लगभग एक तिहाई हिस्सा डीजल का है, जबकि पेट्रोल का हिस्सा केवल 10 फीसदी है।

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