शेयर बाज़ार में रिटेल निवेशक अगर म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों के जरिए ज्यादा पहुंच रहे हैं, नियमित एसआईपी कर रहे हैं तो यह एक स्वस्थ सिलसिला है। इससे वे भारत की विकासगाथा का हिस्सा बन रहे हैं। हालांकि इसमें भी रिस्क है, लेकिन यह रिस्क म्यूचुअल फंड स्कीमों के प्रोफेशनल मैनेजर और उनकी टीम संभालती रहती है। मगर, रिटेल निवेशकों का इंट्रा-डे ट्रेड और एफ एंड ओ, खासकर ऑप्शंस ट्रेडिंग में कूदना उनके लिए ही नहीं,औरऔर भी

सरकार और सेबी दोनों दिखा रहे हैं कि वे शेयर बाज़ार में रिटेल निवेशकों की बढ़ती दुर्दशा से चिंतित हैं, खास तौर पर फ्यूचर्स व ऑप्शंस से उन्हें दूर रखना चाहते हैं। लेकिन उनके सारे उपाय महज जुबानी जमाखर्च हैं। दरअसल, वे नहीं चाहते कि आम निवेशक शेयर बाज़ार की इंट्रा-डे या एफ एंड ओ ट्रेडिंग से दूर हो जाएं क्योंकि ऐसा हो गया तो बाज़ार में सक्रिय मगरमच्छों के मुंह का निवाला छिन जाएगा और वेऔरऔर भी

फटाफट लाभ कमाने की लालच में देश के लाखों नहीं, करोड़ों निवेशक शेयर बाज़ार पर टूटे पड़े हैं। बीएसई की वेबसाइट के मुताबिक पंजीकृत निवेशकों की संख्या 19.32 करोड़ हो चुकी है। निवेश व ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज़ की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक देश की लिस्टेड कंपनियों में रिटेल निवेशकों या आम घरों का स्वामित्व 21.5% पर पहुंच चुका है। अमेरिका को छोड़ दें तो दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में लिस्टेड कंपनियों मेंऔरऔर भी

शेयर बाज़ार का स्वरूप तो दुनिया भर में कमोबेश एक-सा ही रहता है। डिमांड और सप्लाई के संतुलन में बेचने की आतुरता व झोंक ज्यादा बलवान तो शेयर गिरते हैं और खरीदने की आतुरता व झोंक अधिक तो शेयर बढ़ जाते हैं। लेकिन पिछले 10-12 साल में अपने शेयर बाज़ार की संरचना बदल गई है। पहले रिटेल या आम निवेशकों की स्थिति तिनकों या चिड़िया के टूटे पंखों की तरह थी जो हवा के झोंकों में उड़औरऔर भी