बैंकिंग, फाइनेंस व सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था की शानपट्टी हैं, जबकि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र रीढ़ की हड्डी और असली कलेवर है। इसी के दम पर शेयर बाज़ार लम्बे समय तक लगातार अच्छा रिटर्न देता है। लेकिन अपने यहां तमाम दावों के बावजूद मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की हालत कमज़ोर है। दिसंबर 2014 में भारत सरकार और उद्योग के शीर्ष नुमाइंदों ने लम्बी बहस के बाद एक्शन प्लान बनाया था कि साल 2025 तक देश के जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान 25%औरऔर भी

शेयर बाज़ार कुलांचे मार रहा है। निफ्टी व सेंसेक्स रह-रहकर नई-नई ऊंचाई छूते जा रहे हैं। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 में हमारे जीडीपी के 6.5% और महीने भऱ पहले बीती जून तिमाही में 8% बढ़ने का अनुमान लगाया है जिसका आधिकारिक आंकड़ा 31 अगस्त को आएगा। इस बीच कंपनियों के जून तिमाही के नतीजे आते जा रहे हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा अब तक घोषित 281 कंपनियों के नतीजों के विश्लेषण से पता चलाऔरऔर भी

शेयर बाजार के बढ़ने का देश में गरीबी या बेरोज़गारी से कोई ताल्लुक नहीं है। उसका खास रिश्ता देश के जीडीपी और उसमें भी मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास से होता है। बैंकों की बैलेंस शीट पुराने ऋणों को राइट-ऑफ और एनपीए को एनकेन प्रकारेण घटाकर चमका दी गई है। यह भी सच है कि इधर कई सालों से सरकार का ज़ोर इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, रेलवे और डिफेंस क्षेत्र को मजबूत करने पर है। इंजीनियरिंग व कंस्ट्रक्शन केऔरऔर भी