अगर आप मानव शरीर को नहीं समझते तो अच्छे डॉक्टर नहीं बन सकते। मशीनों और जटिल समीकरणों को नहीं समझते तो अच्छे इंजीनियर नहीं बन सकते। इसी तरह अगर आप कंपनी के बिजनेस को नहीं समझते तो अच्छे निवेशक नहीं बन सकते। निवेश का मतलब कुछ संख्याओं पर दांव लगाना नहीं। इसका मतलब है उस कंपनी में स्वामित्व हासिल करना जिसमें आप अपनी रिस्क पूंजी लगाते हैं। भले ही वह छोटी रकम हो, 100-200 शेयर हों। मगरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में डिमांड-सप्लाई का सारा खेल, इसका सारा संतुलन बहुत-बहत धनवान लोगों (हाई नेटवर्थ इंडीविजुल्स या एचएनआई), बैंकों, म्यूचुअल फंडों व बीमा कंपनियों जैसी देशी संस्थाओं और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की सक्रियता से तय होता है। छोटी व मध्यम कंपनियों के शेयरों के उतार-चढ़ाव में एचएनआई निर्णायक होते हैं, जबकि बड़ी कंपनियों के शेयरों की दशा-दिशा देशी व विदेशी निवेशक संस्थाएं (डीआईआई व एफआईआई) तय करती हैं। इसलिए अगर शेयर बाज़ार में डिमांड-सप्लाई के नियमऔरऔर भी

यूं तो अपने शेयर बाज़ार में पंजीकृत निवेशकों की संख्या 10.25 करोड़ के पार जा चुकी है। लेकिन इनमें से बमुश्किल 25 लाख ही बड़े निवेशक होंगे। बाकी दस करोड़ रिटेल निवेशक व ट्रेडर हैं जिनकी सक्रियता का अधिक से अधिक वही असर होता है जैसा बहती गंगा से दो-चार बाल्टी पानी निकाल लेना या उसमें डाल देना। रिटेल ट्रेडरों व निवेशकों की खरीद-बिक्री का शेयरों के भाव पर कोई असर नहीं पड़ता। वे अमूमन एक बारऔरऔर भी

बीएसई व एनएसई में सक्रिय ट्रेडिंग करीब 500 कंपनियों में ही होती है और इनमें सबसे से ज्यादा ट्रेडिंग उन कंपनियों में होती है जो किसी न किसी सूचकांक में शामिल हैं। बीएसई सेंसेक्स की सारी 30 कंपनियां एनएसई के निफ्टी-50 की 50 कंपनियों में शामिल हैं। एनएसई में सबसे बड़ा सूचकांक निफ्टी-500 है। कुल मिलाकर यही वो 500 कंपनियां हैं जिनके शेयरों में आए-दिन उतार-चढ़ाव आता रहता है। लेकिन इन कंपनियों की भी धुरी हैं निफ्टी-50औरऔर भी