दुनिया के कौन-से देश है जहां से एफपीआई के रूप में सबसे ज्यादा धन भारत के वित्तीय बाज़ार में आता है? भारत में निवेश करनेवाले शीर्ष 10-11 देशों में अमेरिका टॉप पर है। उसके बाद मॉरीशस, लक्ज़मबर्ग, सिंगापुर, ब्रिटेन, आयरलैंड, कनाडा, जापान, नॉरवे, फ्रांस व नीदरलैंड्स (हॉलैंड) का नंबर है। ध्यान दें कि इसमें यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्था जर्मनी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन का नाम नहीं है। इसकी एक वजह तो है किऔरऔर भी

विदेशी पोर्टपोलियो निवेशक (एफपीआई) तो प्रवासी पक्षियों की तरह हैं जहां अनुकूल मौसम जितने समय के लिए मिलेगा, वहां उतने समय के लिए चले जाएंगे। एफपीआई को कम से कम रिस्क में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना है। उन्हें भारत से कोई विशेष अनुराग नहीं है। जहां ज्यादा मुनाफा मिलेगा, उधर का ही रुख कर लेंगे। जान लें कि भारत को अपने शेयर व वित्तीय बाज़ार की चमक बनाए रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा एफपीआई कीऔरऔर भी

भारतीय शेयर बाज़ार के लिए विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का बने रहना कितना अहमियत रखता है, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि हमारा सालाना बजट अभी 39.45 लाख करोड़ रुपए का है, जबकि एफआईआई द्वारा भारत में प्रबंधित आस्तियां (ऐसेट अंडर कस्टडी या एयूसी) घटने के बावजूद फरवरी माह में 49.75 लाख करोड़ रुपए हैं जिसमें से 45.55 लाख करोड़ रुपए उन्होंने शेयर बाज़ार में लगा रखे थे। जनवरी में इनका एयूसी 52.13 लाख करोड़औरऔर भी

विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाज़ार से भागे जा रहे हैं। एनएसडीएल के आंकड़ों के मुताबिक इस मार्च महीने में 25 तारीख तक उन्होंने हमारे कैश सेगमेंट में 41,550 करोड़ रुपए की शुद्ध बिकवाली की है। जनवरी से जोड़ ले तो अब तक उन्होंने हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से कुल 1,10,445 करोड़ रुपए निकाले हैं। वहीं, ऋण सेगमेंट या बांडों से उन्होंने इस दौरान मात्र 6141 करोड़ रुपए निकाले हैं। जानकार कहते हैं कि इसकी खासऔरऔर भी

विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भले ही भारत की विकासगाथा को लेकर फिलहाल निराशा दिखा रहे हों। लेकिन हकीकत यह है कि हमारे आर्थिक विकास की संभावना अभी खत्म नहीं हुई है। इसकी मूल वजह है कि भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में शुमार है। यहां की 54 प्रतिशत आबादी 25 साल से कम उम्र की है और यह स्थिति 2035 से 2040 तक बनी रहेगी। काम करनेवाले ज्यादा, उनके ऊपर निर्भर लोग कम। भारत का यहऔरऔर भी