भारत में अपनी पूंजी की कमी नहीं है। लेकिन कमाल यह है कि हमारे पूंजी बाज़ार, खासकर शेयर बाज़ार के रुख का फैसला विदेशी निवेशक करते हैं। यह हमारे बाज़ार की एक कड़वी हकीकत है जिसे हर किसी को स्वीकार करना पड़ेगा। वैसे तो विदेशी संस्थागत निवेशकों और देशी संस्थागत निवेशकों में हमेशा जुगलबंदी चलती है। एक बेचता तो दूसरा खरीदता है। लेकिन विदेशी 350 करोड़ से ज्यादा बेचें तो बाज़ार गिरता है। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के रूप में आखिर किसका धन आकर भारतीय शेयर बाज़ार में लगता है? इस बार मई में, जब चुनावों की अनिश्चितता छाई हुई थी, तब ऐसे निवेशक क्यों चढ़े हुए बाज़ार में भी झूमकर धन लगा रहे थे? जाननेवाले सब जानते हैं। मॉरीशस जैसे रूट बंद हो जाने पर भी कालेधन का रास्ता बंद नहीं हुआ है। नहीं तो चुनावों में 60-70 हज़ार करोड़ का कालाधन कैसे लग जाता! अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

सरकार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का अंदाज़ निराला है। एक तरफ उन्होंने इस बार बजट में एफपीआई को खुश करने की भरपूर कोशिश की। उनसे जुड़े केवाईसी मानक ढीले कर दिए ताकि उन्हें निवेश बढ़ाने में कोई दिक्कत न आए। दूसरी तरफ, जब वे ‘सुपर-रिच’ टैक्स पर एतराज जता रहे हैं तो वित्त मंत्री ने सुनने से ही इनकार कर दिया। आखिर जो टैक्स महज दिखावा है, उस पर इतनी हेकड़ी क्यों! अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

जिन विदेशी निवेशकों की तरफ इस साल के बजट में बड़ी आशा भरी निगाहों से देखा गया था, वे अभी नाराज़ चल रहे हैं। खासकर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने अपनी बेरुखी जाहिर कर दी है। इस साल जनवरी में इक्विटी से 4262 करोड़ रुपए निकालने के बाद फरवरी से जून तक 84,780 करोड़ डॉलने वाले एफपीआई जुलाई में अब तक 7712 करोड़ निकाल चुके हैं। उनकी खास नाराजगी ‘सुपर-रिच टैक्स’ से है। अब सोम का व्योम…औरऔर भी

महज दो दिन में शेयरधारकों के 3.79 लाख करोड़ रुपए स्वाहा। यस बैंक पिछले साल अगस्त के बाद 78% गिर चुका है। इससे बाकी शेयरधारकों की बात छोड़िए, उसके मालिक व कर्ताधर्ता रह चुके राणा कपूर के ही लगभग 7000 करोड़ रुपए उड़ गए। शेयर बाज़ार के रिस्क को समझने के लिए कभी-कभी इन झटकों पर गौर कर लेना चाहिए। लेकिन बहते पानी में बुलबुलों की गिनती नहीं की जाती। अब तथास्तु में आज की खास कंपनी…औरऔर भी