शेयर बाज़ार में उतरे ज्यादातर रिटेल ट्रेडर घाटा खाते हैं क्योंकि वे पारम्परिक सोच से बाहर नहीं निकल पाते। वे भावनाओं को अपने फैसले पर हावी होने देते हैं। बाज़ार जब काफी चढ़ चुका होता है और हर तरफ खरीदने-खरीदने का हल्ला होता है तो वे शोर का शिकार बनकर खरीदने लग जाते हैं और बाज़ार जब काफी गिर चुका है तो बेचने-बेचने के शोर में खुद भी घबराकर बेचने लग जाते हैं। अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

चढ़े हुए शेयर बाज़ार में बहुत ज्यादा तेज़ी का मानसिकता उसके बढ़ने के लिए कतई अच्छी नहीं होती क्योंकि ज्यादा भाव के कारण तब कम से कम लोग खरीदने को उत्सुक होते हैं। उनकी खरीद तभी शुरू सकती है जब भाव गिरकर वाजिब स्तर पर आ जाएंगे। वाजिब स्तर मतलब वहां जहां समझदार निवेशकों को लगता है कि अब किसी शेयर के लिए दिया गया भाव उसके वाजिब मूल्य से काफी कम है। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

बड़ी व ब्लूचिप कंपनियों के शेयर चढ़ते जा रहे हैं, जबकि स्मॉल व मिडकैप कंपनियों के शेयर ज़मीन से उठ नहीं पा रहे। यह सिलसिला जनवरी 2018 के बाद से बदस्तूर जारी है। खास वजह यह है कि अर्थव्यवस्था के मुश्किल वक्त में निवेशकों को ब्लूचिप कंपनियों में सुरक्षा दिखती है, जबकि छोटी व मझोली कंपनियों में खतरा। लेकिन वक्त सुधरते ही शीर्ष सूचकांकों से बाहर पड़ी कंपनियां भी चमक सकती हैं। तथास्तु में एक संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में उतरे ट्रेडर व निवेशक के रूप में हमें भावनाओं पर आधारित खरीद-बिक्री से बचना चाहिए और वही करना चाहिए जो भावों के चार्ट पर डिमांड और सप्लाई का समीकरण, उनका संतुलन कह रहा हो। ऐसा करने पर भी बाज़ार का रिस्क खत्म नहीं होता। लेकिन वह न्यूनतम ज़रूर हो जाता है। अभी के दौर में शेयर सूचकांक जितना चढ़ चुके हैं, उसे देखते हुए बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है। अब शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

बाज़ार गिरते-गिरते आखिर कहां तक गिर सकता है? वहां तक, जहां समझदार खरीदनेवालों को बाज़ार में फिर से मूल्य नहीं दिखता। जहां उन्हें लगेगा कि इस स्तर पर शेयरों को खरीदना मुनाफे का सौदा बन सकता है। भाव जब वहां तक गिर जाते हैं जहां कोई भी बेचने को तैयार नहीं होता तो वहां पर स्टॉक या बाज़ार की सप्लाई खत्म हो जाती है और डिमांड का नया चक्र शुरू हो जाता है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी