शेयर बाज़ार मूलतः अर्थव्यवस्था का आईना होता है। खुद सरकार के मुताबिक, इस साल अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले चार सालों में सबसे खराब रहेगी। 2017-18 में जीडीपी के 6.5% बढ़ने का अनुमान है, जबकि 2016-17 में यह 7.1%, 2015-16 में 8% और 2014-15 में 7.5% बढ़ा था। यह नीतिगत लकवे की शिकार यूपीए सरकार के आखिरी साल 2013-14 की दर 6.9% से कम है। फिर भी बाज़ार बम-बम किए जा रहा है! अब मंगल की दृष्टि…औरऔर भी

हम कितना भी ज्ञान हासिल कर लें, अपनी नज़र बहुत-बहुत व्यापक बना लें, लेकिन संपूर्ण सच हमारी पकड़ से हमेशा बाहर ही छिटक जाता है। शेयर बाज़ार पर यह नियम कुछ ज्यादा ही लागू होता है क्योंकि वह तर्कों से ज्यादा लाखों लोगों की लालच व डर जैसी स्थूल भावनाओं से नियंत्रित होता है। इन लोगों में अब दुनिया के ग्लोबल हो जाने के बाद विदेशी भी शामिल हो गए हैं। अब देखते हैं सोमवार का व्योम…औरऔर भी

शेयर बाज़ार के प्रमुख सूचकांक निफ्टी-50 ने 28.47 का सर्वोच्च पी/ई अनुपात या अब तक का सबसे महंगा स्तर 11 फरवरी 2000 को पकड़ा था। तब डॉटकॉम का बुलबुला और केतन पारेख का घोटाला चरम पर था। फिर 28.29 का स्तर उसने 8 जनवरी 2008 को पकड़ा। मगर बाज़ार नौ महीने बाद करीब 60% गिर गया। अभी शुक्रवार, 5 जनवरी 2018 को निफ्टी-50 का पी/ई अनुपात 26.99 रहा है। इसलिए सावधान! अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

दिक्कत यह है कि अपने यहां आर्थिक आंकडों का घनघोर अकाल है। मुद्रास्फीति या औद्योगिक उत्पादन को छोड़ दें तो हम बहुत सारे आंकड़ों मे बहुत-बहुत पीछे चलते हैं। इसलिए बहुत सारे काम में अंदाज़ चलता है। ऐसा ही एक अंदाज़ है कि शेयर बाज़ार के लगभग 95% ट्रेडर घाटा उठाते हैं, जबकि बमुश्किल 5% ही कमा पाते हैं और इन 95% ट्रेडरों में से तकरीबन सारे के सारे रिटेल ट्रेडर होते हैं। अब शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी