बाज़ार हमसे स्वतंत्र है। वो हमारे पहले था और बाद में भी रहेगा। उसकी चाल और स्वरूप के विकसित होने का अपना ढर्रा है। हमें उसके साथ लयताल बैठानी है। तभी हम वहां से कमा सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि हम तारीख के हिसाब से पूरा रजिस्टर बनाएं कि कोई ट्रेड चुना तो क्यों चुना और उससे कब व क्यों निकले। अपने ही अनुभव की रौशनी में खुद सीखते जाना है। अब शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

ट्रेडिंग में एक और मनोविज्ञान बड़ा आम है। दांव अच्छा चल जाए तो अपना बखान और गलत पड़ जाए तो बाज़ार का दोष। गिनाने लगते हैं कि ऑपरेटर लोग बाज़ार में घुसे हुए हैं और बाज़ार को जहां जाना चाहिए, वहां से उलटी दिशा में ले जाते हैं। कहावत है कि नाच न आवै, आंगन टेढ़ा। बाज़ार में ऑपरेटर, समझदार निवेशक और भांति-भांति के लोग सक्रिय हैं। इन्हीं से बनता है बाज़ार है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी