खबरों पर शेयर बाज़ार में उथल-पुथल मचती है और ज्यादा बड़ी खबरों पर ज्यादा ही बवाल मचता है। मसलन, 17 मई 2004 को वाजपेयी सरकार की हार पर बाज़ार एक दिन में 11.1% टूट गया था, जबकि 17 मई 2009 को यूपीए सरकार की जीत पर 17.3% चढ़ गया था। इस हफ्ते सोमवार को राजन के झटके पर कुछ ऐसा ही अंदेशा था। अचंभा! कुछ हुआ नहीं। झटका ब्रिटेन की संघ-निकासी पर! करते हैं शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

जिस जनमत-संग्रह पर दुनिया भर का ध्यान लगा है, वो आज लंदन के समय से सुबह 7 बजे (भारतीय समय 11.30 बजे) से शुरू होकर रात 10 बजे तक चलेगा। लेकिन कल शुक्रवार को अपना बाज़ार खुलने के लगभग ढाई घंटे बाद ही पता चलेगा कि ब्रिटेन की जनता ने यूरोपीय संघ के साथ 43 साल से चला आ रहा रिश्ता निभाने का फैसला किया है या तोड़ने का। कयासबाज़ी का फायदा नहीं। देखें गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

बाज़ार में डर और लालच की दो अतियां चलती हैं और ये एक-दूसरे को बेअसर भी करती हैं। राजन के जाने से लगा झटका सरकार ने इन्हीं दो भावनाओं के दम पर संभाला है। सोमवार को घरेलू संस्थाओं, ब्रोकरेज हाउसों व कंपनी मालिकों ने मोर्चा संभाला तो मंगलवार को विदेशी संस्थाओं ने एफडीआई के नियमों में ढील से खरीद बढ़ा दी। पूंजी की कोई नैतिकता नहीं होती, मुनाफा ही उसकी एकमात्र प्रेरणा है। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

खबर के सीमित पहलू होते हैं। लेकिन वित्तीय बाज़ार में उसके असर के असीमित पहलू होते हैं। कल सभी माने बैठे थे कि बाज़ार तो गिरेगा ही गिरेगा और शॉर्ट करना सबसे सही कदम होगा। लेकिन सरकार या उस्तादों ने जो भी सोची-समझी चाल चली हो, बाज़ार अंततः बढ़कर बंद हुआ। सोचिए, इससे शॉर्ट करनेवालों को कितनी तगड़ी मार लगी होगी! इसीलिए अकाट्य नियम है कि खबरों के दिन बाजार से दूर रहें। अब मंगल की दृष्टि…औरऔर भी

लोकतंत्र में जितना महत्व चुनावों का है, उतना ही महत्व बाज़ार का होता है। जिस तरह सत्ता में बैठी पार्टी मतदाता की अवहेलना नहीं कर सकती, उसकी तरह उसे बाजार की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। मगर, मोदी सरकार ने अपने गुरूर में आकर रिजर्व बैंक गवर्नर रघुरान राजन से कह दिया कि उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं दिया जाएगा। बाज़ार सकते में है। सोम के व्योम पर काले बादल छा गए हैं। बाहर निकलने में खतरा है…औरऔर भी