डाबर इंडिया का शेयर है कि बढ़ता ही नहीं। 16 जून को 94.03 रुपए पर बंद हुआ था और पांच महीने बाद कल 16 नवंबर को भी कमोबेश उसी स्तर 93.30 पर बंद हुआ है। वह भी तब, जब कंपनी ने कल ही घोषणा की है कि उसकी अमेरिकी इकाई डर्मोविवा स्किन एसेंसियल्स अमेरिका की ही परसनल केयर कंपनी नमस्ते लैबोरेटरीज का अधिग्रहण 10 करोड़ डॉलर में कर रही है। इससे डाबर समूह को नमस्ते लैब्स की दो अमेरिकी इकाइयां और दक्षिण अफ्रीका व नाइजीरिया की एक-एक इकाई मिल जाएगी। अधिग्रहण का सारा काम चालू साल 2010 के अंत तक पूरा हो जाएगा।
डाबर के चेयरमैन आनंद बर्मन ने एक बयान में कहा कि “यह अधिग्रहण अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता सामग्रियों के बाजार में व्यापक उपस्थिति बनाने की हमारी रणनीति के अनुरूप है।” बता दें कि नमस्ते लैब्स हेयरकेयर उत्पाद बनाती है जो ज्यादातर अफ्रीकी मूल के लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं। अमेरिका के अलावा अफ्रीका, मध्य-पूर्व, यूरोप और उत्तर अमेरिका में कैरीबियाई क्षेत्र के देशों में उसकी अच्छी दखल है। नमस्ते लैब्स के संस्थापक और सीईओ गैरी गार्डनर हैं।
डाबर द्वारा अधिग्रहण के बाद भी नमस्ते लैब्स की मौजूदा प्रबंधन टीम गैरी गार्डनर के नेतृत्व में काम करती रहेगी। डाबर के चेयरमैन आनंद बर्मन का कहना है कि यह सौदा कंपनी के उत्पादों के अमेरिका में पहुंचने के गेटवे का काम करेगा। साथ ही अफ्रीका में डाबर की उपस्थिति और मजबूत बनेगी। इस समय कंपनी को अफ्रीकी देशों से कुल 3 करोड़ डॉलर की आय मिलती है। इस अधिग्रहण के बाद अगले साल तक इसके कम से कम एक तिहाई बढ़ जाने की उम्मीद है। डाबर समूह आगे भी नए-नए अधिग्रहण की तलाश में लगा रहेगा और इसका वित्त पोषण आंतरिक प्राप्तियों या ऋण के जरिए करेगा।
बता दें कि सितंबर 2010 की तिमाही में डाबर इंडिया (बीएसई कोड – 500096, एनएसई कोड – DABUR) ने 800.50 करोड़ रुपए की आय पर 126.18 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। इससे पहले वित्त वर्ष 2009-10 में उसकी आय 2758.40 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 414.28 करोड़ रुपए था। कंपनी की इक्विटी 174.07 करोड़ रुपए है जो एक रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसमें प्रवर्तकों का हिस्सा 68.74 फीसदी है, जबकि एफआईआई के पास कंपनी के 16.18 फीसदी और डीआईआई के पास 8.11 फीसदी शेयर हैं। इस तरह आम निवेशकों के पास कंपनी के केवल 6.96 फीसदी शेयर हैं।
डाबर इंडिया का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 2.55 रुपए है और उसका शेयर 36.58 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इसके जैसी मजबूत उपभोक्ता ब्रांड वाली कंपनियों में हिंदुस्तान यूनिलीवर का पी/ई अनुपात 29.11, मैरिको का 33.97, प्रॉक्टर एंड गैम्बल का 39.69 और गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स का पी/ई अनुपात 37.81 है। दिक्कत यह भी है कि डाबर इंडिया के शेयर की बुक वैल्यू केवल 5.95 रुपए है। ऐसे में इसका शेयर बढ़ना चाहे भी तो कैसे बढ़े!
लेकिन शेयर भावों की गति के बीच एक बात और गौर करने की है। डाबर इंडिया ने 10 सितंबर 2010 को अपने शेयरधारकों पर 1:1 में बोनस शेयर दिया है। 9 सितंबर को उसका बंद भाव बीएसई में 108.40 रुपए था। 10 सितंबर के बाद एक्स-बोनस होने पर इसे कायदे से घटकर 54-55 रुपए पर आ जाना चाहिए था। लेकिन वह तो 13 सितंबर 2010 को भी 108.40 रुपए पर डटा रहा। यही नहीं, इस दौरान वो 20 सितंबर को 112.35 रुपए पर 52 हफ्ते का नया शिखर बना गया। इस तरह जून से अब तक के पांच महीनों में सच कहें तो डाबर इंडिया में शेयरधारकों के निवेश का मूल्य दोगुना हो चुका है क्योंकि दाम भले ही कमोबेश बराबर हों, लेकिन पहले के हर एक शेयर के बदले अब उनके पास दो शेयर हो गए हैं। मगर, एक्स-बोनस होने के बावजूद शेयर के भाव पर कैसे रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा, यह पहेली अभी तक समझ में नहीं आ रही।