गार का मारा कॉक्स एंड किंग्स बेचारा

इस बार के बजट में घोषित गार (जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल) की ऐसी मार दुनिया की सबसे पुरानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानीमानी, टूर व ट्रैवेल कंपनी कॉक्स एंड किंग्स पर पड़ी है कि उसका शेयर हर दिन दबता ही चला जा रहा है। कल, 19 अप्रैल 2012 को उसने 139 रुपए पर 52 हफ्ते की नई तलहटी बना डाली। हो सकता है कि आज फिर नई तलहटी बन जाए। यह बजट आने के एक दिन पहले 15 मार्च को ऊपर में 193.50 रुपए तक चला गया था। तब से लेकर अब तक यह 28.16 फीसदी का धक्का खा चुका है।

वजह सिर्फ इतनी है कि इसकी 68.26 करोड़ रुपए की इक्विटी में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की हिस्सेदारी 21.28 फीसदी है जिसमें से 14.78 फीसदी शेयर मॉरीशस के पते वाले एफआईआई के पास हैं। बजट में गार के तहत आयकर विभाग को छूट दे दी गई है कि वह मॉरीशस के रास्ते भारत में निवेश करनेवाले एफआईआई को दोहरी कराधान संधि (डीटीएए) का फायदा देने से इनकार कर दे। जिन भी एफआईआई के पास मॉरीशस में स्थाई पता नहीं होगा, उन पर चालू वित्त वर्ष की पहली तारीख से टैक्स लगना शुरू हो गया है। हां, यह नियम पिछली तारीख से लागू होगा। मतलब चाहें तो एफआईआई अब भी टैक्स के स्वर्ग माने जानेवाले मॉरीशस जैसे देशों में स्थाई सेट-अप बना सकते हैं।

अगर एफआईआई को टैक्स मुक्ति का लाभ लेना है तो उसे कर-अधिकारियों के सामने साबित करना पड़ेगा कि उसने महज कर-संधि का फायदा उठाने के लिए मॉरीशस का पता नहीं दिया है। ऐसा न साबित कर पाने पर उन्हें साल भर के भीतर काट दिए गए सौदों पर 15 फीसदी का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना पड़ेगा। इस फजीहत से बचने के लिए एफआईआई अपना निवेश निकाल रहे हैं और उनकी देखादेखी दूसरे निवेशक भी भाग रहे हैं। वरना, कॉक्स एंड किंग्स के शेयर के इस कदर गिर जाने की कोई दूसरी ठोस वजह नहीं दिखती।

हालांकि, अभी तक कॉक्स एंड किंग्स की शेयरधारिता के दिसंबर 2011 तक के ही आंकड़े उपलब्ध हैं। इसलिए ठीकठाक नहीं पता कि कितने एफआईआई उससे मार्च 2012 के अंत तक बाहर निकल चुके हैं। कुछ ही दिनों में यह आंकड़ा सामने आ जाएगा। तभी साफ होगा कि एफआईआई सचमुच इससे भागे हैं या उनके डर का बहाना बनाकर इसे सायास पीटा गया है। कंपनी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 58.66 फीसदी है जिसमें से 38.78 फीसदी भारतीय और 19.88 फीसदी इक्विटी विदेशी प्रवर्तकों के पास है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 20,844 है। इसमें से 19,658 यानी 94.31 फीसदी एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के महज 3.01 फीसदी शेयर हैं। म्यूचुअल फंड, बैंकों व बीमा कंपनियों जैसे डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाओं) के पास उसके 6.21 फीसदी शेयर हैं।

कॉक्स एंड किंग्स का तंत्र चार महाद्वीपों और 25 देशों तक फैला है। वह दुनिया की सबसे पुरानी 1758 में गठित ट्रैवेल कंपनी है और उसका मुख्यालय भारत में ही है। उसने पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में स्टैंड-एलोन रूप से 235.66 करोड़ रुपए की आमदनी पर 76.72 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। बीते साल 2011-12 में दिसंबर तक के नौ महीनों में वह 215.10 करोड़ रुपए की आमदनी पर 70.52 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमा चुकी है। दिसंबर तिमाही में उसकी आय में 22.52 फीसदी और शुद्ध लाभ में 61.19 फीसदी का इजाफा हुआ है।

कंपनी के दिसंबर 2011 तक के नतीजों के आधार पर उसके पिछले बारह महीनों का स्टैंड-एलोन ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 7.08 रुपए है। कल उसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 533144) में 139.40 रुपए और एनएसई (कोड – COX&KINGS) में 139.15 रुपए पर बंद हुआ है। इस तरह उसका शेयर फिलहाल 19.69 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। जो शेयर आठ महीने पहले 4 अगस्त 2011 को 46.85 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हुआ हो और तब उसका भाव 248.50 रुपए रहा हो, वह अगर इसके लगभग आधे स्तर पर मिल रहा है तो जाहिरा तौर पर उसे पकड़ लेना चाहिए।

इसके कुछ स्पष्ट आधार हैं। पहला तो यही कि गार को लेकर उठा गुबार जल्दी ही शांत हो जाएगा। दूसरा, रिजर्व बैंक ने हाल ही में कॉक्स एंड किग्स को विदेशी मुद्रा बाजार में अधिकृत डीलर-II का लाइसेंस दिया है। बता दें कि रिजर्व बैंक तीन तरह के विदेशी मुद्रा लाइसेंस जारी करता है। एडी-I का लाइसेंस केवल बैंकों को मिलता है। एडी-II का लाइसेंस सीमित मनी चेंजर्स को मिलता है, जबकि एफएमएमसी का लाइसेंस पूरी तरह मनी चेंजर्स का काम करनेवालों को मिलता है। एडी-II का लाइसेंस मिलने से कॉक्स एंड किंग्स को फायदा यह होगा कि वह अब विदेशी मुद्रा में नॉस्ट्रो एकाउंट खोल सकेगी जिससे उससे बैंक चार्जेज न कलेक्शन चार्जेज बच जाएंगे। साथ ही वह विदेशी मुद्रा में आ रहे उतार-चढ़ाव को आसानी से मैनेज कर सकेगी। मतलब, डॉलर रुपए की बहुत ज्यादा उठा-पटक का उस पर खास असर नहीं पड़ेगा।

तीसरे, कंपनी ने पिछले साल नवंबर 2011 में ब्रिटिश कंपनी होलिडेब्रेक का अधिग्रहण 32.34 करोड़ ब्रिटिश पाउंड (लगभग 2690 करोड़ रुपए) में पूरा कर लिया है। इसका अच्छा-खास फायदा उसे आगे जाकर मिलेगा। बता दें कि कॉक्स एंड किंग्स का आईपीओ ढाई साल पहले दिसंबर 2009 में आया था और उसका दस रुपए का शेयर 300 रुपए मूल्य पर जारी किया गया था। उसका शेयर 22 जून 2011 से पांच रुपए अंकित मूल्य का बन चुका है। यानी, 150 रुपए पर जारी शेयर उससे कम 140 रुपए पर चल रहा है। बाकी फैसला आपको करना है। हमारी तरफ से तो हरी झंडी है। लेकिन मार्च 2012 तक की शेयरधारिता के आंकड़े देख लेने के बाद ही निवेश करें, तो अच्छा रहेगा।

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