बैंकों के बढ़ते एनपीए पर चिंता, लेकिन सब ठीक

देश के विभिन्न बैंकों के बढ़ते डूबत ऋणों या गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) पर चिंता व्यक्त करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि इस संबंध में उपयुक्त उपाए किए जा रहे हैं। साथ ही बैंकों से ऋण मंजूर करने के दौरान सभी जरूरी प्रक्रियाओं को अपनाने को कहा गया है।

लोकसभा में सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए आकड़ों के अनुसार, मार्च 2009 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों की बकाया राशि 44,039 करोड़ रुपए थी जो मार्च 2010 में 57,301 करोड़ रुपओ, मार्च 2011 में 71,047 करोड़ और जून 2011 में बढ़कर 78,119 करोड़ रुपए हो गई।

शुक्रवार को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान अर्जुन राय के सवाल के जवाब में प्रणव मुखजी ने कहा कि मैं सदस्य की चिंताओं को समझता हूं। पिछले तीन सालों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एनपीए में बढ़ोतरी का सिलसिला बढ़ा है। मैंने राष्ट्रीय बैंकों के मुख्य कार्यकारियों के सम्मेलन में उनका ध्यान इस ओर दिलाया था।

वित्त मंत्री ने कहा कि एनपीए कम करने का एक रास्ता यह हो सकता है कि ऋण के प्रवाह पर रोक लगाई जाए, लेकिन लोक कल्याण व विकास से जुड़े कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें देखते हुए ऐसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसको देखते हुए बैंकों से ऋण के प्रवाह पर रोक नहीं लगाने को कहा गया है। लेकिन उनसे रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों को अपनाते हुए ऋण मंजूर करते समय सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने को कहा गया है।

श्री मुखर्जी ने कहा कि बैंकों से संतुलित मार्ग अपनाने को कहा गया है। बढ़ते एनपीए के संबंध में किसी तरह के घोटाले की आशका के बारे में पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार सदस्य की चिंताओं को समझती है। इस संबंध में किसी तरह की गड़बड़ी की बात आने पर सभी जरूरी उपाए करती है।

सरकारी आकड़ों के मुताबिक, मार्च 2009 में नए निजी क्षेत्र के बैंकों का बकाया 13,815 करोड़ रुपए था, यह मार्च 2010 में घटकर 13,772 करोड़, मार्च 2011 में बढ़कर 14,277 करोड़ और जून 2011 में और बढ़कर 14,622 करोड़ रुपए हो गया। इसी प्रकार से मार्च 2009 में पुराने निजी क्षेत्र के बैंकों का बकाया 3072 करोड़ रुपए था, यह मार्च 2010 में बढ़कर 3612 करोड़ रुपए, मार्च 2011 में बढ़कर 3695 करोड़ और जून 2011 में और बढकर 3996 करोड़ रुपए हो गया।

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