ताज़ा खबर यह है कि चीन भारत की सीमा पर पिछले पांच सालों से जो 628 गांव बना रहा था, उनमें उसने अपने लोगों को बसाना शुरू कर दिया। इससे पहले वो जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में हमारी लगभग 800 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़ा कर चुका है। लेकिन एक सच्चाई जो कभी खबर नहीं बनी, वो यह है कि आत्मनिर्भर भारत और ‘मेक-इन इंडिया’ के नारों के बीच औद्योगिक इनपुट के लिए चीन पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। इस समस्या की गंभीरता उद्योगों की सालाना सर्वेक्षण रिपोर्ट से उजागर हो जाती है। इसे इस तथ्य से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए कि 2014-15 से 2022-23 के बीच चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा 48.48 अरब डॉलर से बढ़ते-बढ़ते 100 अरब डॉलर के पार जा चुका है। पिछले साल चीन से हमारा निर्यात 21% बढ़ गया, जबकि निर्यात केवल 6% बढ़ा। यह असंतुलन खिलौनों, दीयों व लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों जैसे सस्ते माल नहीं, बल्कि तमाम अहम महत्व के उद्योगों के इनपुट आयात की वजह से है। अब भी दवाओं का अधिकांश एपीआई हम चीन से मंगाते हैं। मैन्यूफैक्चरिंग कमें चीन पर निर्भरता हमारे लिए सामरिक जोखिम से भरी है। लेकिन मोदी सरकार तो झूठ में मगन है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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