उधर ऊर्जित पटेल ने भारतीय रिजर्व बैक के गवर्नर पद से इस्तीफा दिया, इधर सरकार ने दो दिन बाद ही 12 दिसंबर 2018 को वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव रह चुके शक्तिकांत दास को गवर्नर बना दिया। तब तक दास की आर्थिक व वित्तीय मामलों की उतनी ही समझ थी जितनी आईएएस की तैयारी और वित्त मंत्रालय में सेवा देते हुए हासिल की थी। अन्यथा उन्होंने इतिहास व पब्लिक एडिमिनिस्ट्रेशन में ही एमए कर रखा है। उनकी एक और योग्यता यह भी थी कि उन्होंने आर्थिक मामलों के सचिव रहते हुए नोटबंदी की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। उनकी नियुक्ति से केंद्र सरकार को तो जैसे मनमांगी मुराद मिल गई। उसे रिजर्व बैंक के खजाने पर हाथ साफ करने का मौका मिल गया। उसने बिमल जालान समिति की इस सिफारिश की भी परवाह नहीं की कि रिजर्व बैंक की आकस्मिक निधि को कभी हाथ न लगाना। अंततः रिजर्व बैंक ने 26 अगस्त 2019 को अपनी संचित निधि से 1,76,051 करोड़ रुपए केंद्र सरकार को देने का फैसला कर लिया। इसमें रिजर्व बैंक का 2018-19 का 1.23 लाख करोड़ रुपए का सारे का सारा सरप्लस और सालों से जुटाई 52,637 करोड़ रुपए की आकस्मिक निधि भी शामिल थी। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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