बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर खाक की। उंगली पर जब तक काली स्याही का निशान न लगे, तब तक सरकार में बैठी और उससे बाहर की पार्टियां उसकी कीमत लगा रही हैं। एक बार निशान लग गया, फिर पांच साल तक कौन पूछनेवाला! अभी गिनने को है कि 90 करोड़ मतदाता, जिसमें से 50 करोड़ युवा मतदाता और उसमें से भी 15 करोड़ ऐसे जिन्होंने पिछले पांच सालों में मतदाता बनने काऔरऔर भी

कहते हैं कि शेयर बाज़ार अर्थव्यवस्था के बारे में भविष्य की वाणी बोलता है और उसकी मानें तो हमारी अर्थव्यवस्था बम-बम करती जा रही है। साल 2017 के पहले से लेकर आखिरी ट्रेडिंग सत्र तक शेयर बाज़ार का प्रमुख सूचकांक, सेंसेक्स 28.1 प्रतिशत बढ़ा है। अगर इस रफ्तार से किसानों की आय बढ़ जाए तो वह पांच साल नहीं, 2.8 साल में ही दोगुनी हो जाएगी। लेकिन बाज़ार की आदर्श स्थितियों के लिए बनाए गए पैमाने अक्सरऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर इस बार लाल किले की प्राचीर से सारे देशवासियों की तरफ से संकल्प किया है कि साल 2022 तक नया भारत बना लेंगे। उन्होंने कहा कि पांच साल बाद का ‘भव्य हिन्दुस्तान’ आतंकवाद, सम्प्रदायवाद व जातिवाद से मुक्त होगा। तब भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से कोई समझौता नहीं होगा। वह स्वच्छ होगा, स्वस्थ होगा और स्वराज के सपने को पूरा करेगा। गरीबों के पास बिजली व पानी से साथ पक्का घर होगा। किसान अभीऔरऔर भी

गंगा नगर से ईटा नगर और लेह से लक्षद्वीप तक छोटे-बडे सभी व्यापारी व कारोबारी परेशान हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जिस माल व सेवा कर या जीएसटी को ‘गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स’ की जगह ‘गुड एंड सिम्पल टैक्स’ बता रहे हैं, व्यापारी तबका उसे ‘गड़बड़ सड़बड़ टैक्स’ कह रहा है। दोनों में से सही कौन है? इसके जवाब में धूमिल की सीख याद आती है कि लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, उस घोड़े से पूछो जिसके मुंहऔरऔर भी

हम ऋण लेते हैं तो वह हमारे लिए बोझ या देनदारी होता है। मशहूर कहावत भी है कि अगर हमें बैंक को 100 रुपए लौटाने हैं तो यह हमारी समस्या है, लेकिन हमें अगर 100 करोड़ लौटाने हैं तो यह बैंक की समस्या है। दरअसल, बैंक जब ऋण देता है, तब वह उसके लिए आस्ति होती है क्योंकि मूलधन समेत उस पर मिला ब्याज़ ही उसकी कमाई का मुख्य ज़रिया है। इन ऋणों की वापसी अटक जाएऔरऔर भी

हमारे वित्तीय जगत में ठगी का बोलबाला है। इसीलिए शेयरों से लेकर म्यूचुअल फंड जैसे वित्तीय माध्यमों में निवेश करने वालों की आबादी 2.5% के आसपास ठहरी हुई है और लोग अपना अधिकांश निवेश सोने व प्रॉपर्टी में करते हैं। सरकार, सेबी व रिजर्व बैंक की तरफ से वित्तीय साक्षरता की बात की जाती है। पर देश का वित्त मंत्री ही जब लोगों के वित्तीय अज्ञान का फायदा उठाकर छल करने में लगा हो तो हम कैसेऔरऔर भी

क़ासिद के आते-आते खत इक और लिख दूं, मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जवाब में। सायास या अनायास, जो भी मानें, देश में बजट के सालाना अनुष्ठान का आज यही हाल हो गया है। दो दशक पहले तक लोगों को धड़कते दिल से इंतज़ार रहता था कि वित्त मंत्री क्या घोषणाएं करने वाले हैं। इनकम टैक्स में क्या होने जा रहा है। कस्टम व एक्साइज़ ड्यूटी के बारे में जहां आयातकों व निर्यातकों से लेकर छोटी-छोटीऔरऔर भी

अपनी ज़िंदगी हमें काफी कुछ समझ में आती है। उसकी आर्थिक स्थिति भी बखूबी समझ में आती है क्योंकि उसे हम अपनी ज़मीन, अपने धरातल पर खड़े होकर देखते हैं। पर, कोई देश की अर्थव्यवस्था की बात करे तो सब कुछ सिर के ऊपर से गुज़र जाता है क्योंकि हम उसे आसमां से देखते हैं। अगर हम उसे भी अपनी ज़मीन से खड़े होकर देखें तो शायद सब कुछ अपनी ज़िंदगी की तरह साफ-साफ दिखने लगेगा। यहऔरऔर भी

शरद पवार जैसे बहुरंगी कलाकार की जगह मई 2014 में जब राधा मोहन सिंह को केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया तो आम धारणा यही बनी कि ज़मीन से जुड़े नेता होने के नाते वे देश की कृषि अर्थव्यवस्था ही नहीं, किसानों के व्यापक कल्याण का भी काम करेंगे। संयोग से उससे करीब सवा साल बाद मंत्रालय का नाम भी बदल कर कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय कर दिया गया। लेकिन उसके बमुश्किल महीने भर बाद राधा मोहनऔरऔर भी

केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री एम. वेंकैया नायडू कम नकदी अर्थव्यवस्था की सुविधा और डिजिटल व ऑनलाइन लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी अधिकारियों को तैयार करने में जुट गए हैं। नायडू के पास शहरी विकास, आवास व शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय भी है। उन्होंने बुधवार को अपने दोनों मंत्रालयों के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार की यह पहल सहज लेनदेन के माध्यम से देरी कम करने और भ्रष्टाचार तथा कालेधन की समस्याऔरऔर भी