प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर इस बार लाल किले की प्राचीर से सारे देशवासियों की तरफ से संकल्प किया है कि साल 2022 तक नया भारत बना लेंगे। उन्होंने कहा कि पांच साल बाद का ‘भव्य हिन्दुस्तान’ आतंकवाद, सम्प्रदायवाद व जातिवाद से मुक्त होगा। तब भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से कोई समझौता नहीं होगा। वह स्वच्छ होगा, स्वस्थ होगा और स्वराज के सपने को पूरा करेगा। गरीबों के पास बिजली व पानी से साथ पक्का घर होगा। किसान अभी से दोगुना कमाएगा। प्रधानमंत्री ने सारे देशवासियों का आवाहन करते हुए कहा, “हम सब मिलकर एक ऐसा हिन्दुस्तान बनाएंगे, जहां युवाओं व महिलाओं को अपने सपने पूरे करने के लिए भरपूर अवसर उपलब्ध होंगे।” साथ ही कहा कि ‘न्यू इंडिया’ में हर किसी को विकास के समान अवसर मिलेंगे।
यकीनन, हर भारतवासी प्रधानमंत्री के इस संकल्प से शत-प्रतिशत इत्तेफाक रखेगा क्योंकि इसके पूरा होने में उसका ही भला है। लेकिन बहुतों के मन में संदेह भी है कि क्या 2022 तक के पांच सालों में हम इसे हासिल कर लेंगे? देश के मूड पर आए एक ताजा सर्वेक्षण में सामने आया है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा 2019 में भी सरकार बनाने जा रही है। फिर भी 23 प्रतिशत लोग मानते हैं कि मौजूदा सरकार बातें ज्यादा और काम कम करती है। अगले दो साल में यह प्रतिशत बढ़ गया तो सर्वेक्षण का सारा गणित बिगड़ सकता है। इसलिए हमें अभी से सतर्क रहना पड़ेगा कि नए भारत का जो खाका प्रधानमंत्री ने खींचा है, वह उनकी मौजूदा सरकार के बाकी दो साल और भावी सरकार के तीन सालों में कितना पूरा हो सकता है।
आतंकवाद, सम्प्रदायवाद या जातिवाद से मुक्ति के लक्ष्य को अभी से तौलना बहुत मुश्किल है। हालांकि अभी तक भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों पर भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद के छिटपुट छींटे पड़ते रहे हैं। फिर भी हो सकता है कि मोदी सरकार अगले पांच में अफसरशाही व राजनीति के नापाक गठजोड़ को तोड़ने में सफल हो जाए। इसलिए भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद से मुक्ति पर भी कुछ कहना विशुद्ध कयासबाजी होगा। लेकिन सबके लिए विकास के समान अवसर और किसानों की आय को दोगुना करने जैसे लक्ष्य को निश्चित रूप से उस गति से नापा जा सकता है जो मोदी सरकार ने अब तक के तीन सालों में हासिल की है।
देश की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खेती-किसानों पर निर्भर है तो यह देखना उचित होगा कि क्या साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। सामान्य गणना बताती है कि इसके लिए किसानों की आय को 14.87 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ना होगा। इतिहास गवाह है कि पिछले सौ सालों में दुनिया में कहीं भी कृषि लगातार पांच सालों तक 14 प्रतिशत की रफ्तार से नहीं बढ़ी है। ऊपर से मोदी सरकार के अब तक के तीन सालों में कृषि की विकास दर 0.2 प्रतिशत, 1.2 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत रही है। ऐसे में किसानों की आय का अगले पांच सालों में दोगुना हो जाना लगभग असंभव है। जाहिर है कि इसे संभव बनाने के लिए मोदी सरकार को बेहद नायाब व क्रांतिकारी तरीके अपनाने होंगे।
विकास के अवसरों का मसला सीधे-सीधे हमारी अर्थव्यवस्था की प्रगति से जुड़ा हुआ है। खुद सरकार की तरफ से हाल ही में लाए गए दूसरे आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि हम चालू वित्त वर्ष 2017-18 में 6.5 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत तक के लक्ष्य का ऊपरी स्तर शायद न हासिल कर पाएं। अगर यह दर 7 प्रतिशत से कम रह गई तो विकास के अवसर बढ़ने के बजाय घट जाएंगे। सर्वेक्षण में पिछले दो सालों में हासिल 7.5 प्रतिशत की औसत विकास दर पर भी संदेह जताया गया है क्योंकि इस दौरान सकल स्थाई पूंजी निर्माण मात्र 4.5 प्रतिशत और मात्रा के लिहाज से निर्यात महज दो प्रतिशत बढ़ा है, जबकि उधार व जीडीपी का अनुपात बढ़ने के बजाय दो प्रतिशत घट गया है। विकास का सारा दारोमदार उद्योगों पर है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक मई 2014 से जून 2017 के बीच 111 से रेंगकर 119.6 तक ही पहुंच पाया है।
तीन साल की उपलब्धि से अगले पांच साल की उम्मीदों पर काफी तीन-पांच की जा सकती है। लेकिन यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि ज्यादा तीन-पांच करना सही नहीं होता। ऐसे में हम मौजूदा केंद्र सरकार, खासकर प्रधानमंत्री मोदी से यही अपेक्षा करेंगे कि वे तीन साल की प्रगति को आधार बनाकर अगले पांच सालों का ऐसा खाका बनाएंगे जिससे लालकिले की प्राचीर से इस बार घोषित संकल्प को आसानी से पूरा किया जा सके।
[यह लेख संपादित रूप में दैनिक जागरण के 20 अगस्त 2017 के अंक में ‘मुद्दा’ पेज पर छपा है]