वित्तीय अज्ञान से खेले खुद वित्त मंत्री

हमारे वित्तीय जगत में ठगी का बोलबाला है। इसीलिए शेयरों से लेकर म्यूचुअल फंड जैसे वित्तीय माध्यमों में निवेश करने वालों की आबादी 2.5% के आसपास ठहरी हुई है और लोग अपना अधिकांश निवेश सोने व प्रॉपर्टी में करते हैं। सरकार, सेबी व रिजर्व बैंक की तरफ से वित्तीय साक्षरता की बात की जाती है। पर देश का वित्त मंत्री ही जब लोगों के वित्तीय अज्ञान का फायदा उठाकर छल करने में लगा हो तो हम कैसे वित्तीय साक्षरता हासिल कर सकते हैं।

वित्तीय साक्षरता का पहला सबक यह है कि हम धन को उसके समय मूल्य, यानी उसमें से मुद्रास्फीति के असर को एडजस्ट करके देखें। जैसे, अगर किसी साल मुद्रास्फीति की दर 5 प्रतिशत रही तो उस साल 100 रुपए का समय मूल्य घटकर 95 रुपए रह जाएगा। अगले साल भी मुद्रास्फीति की दर 5 प्रतिशत रही तो 100 रुपए का असल मूल्य घटकर 90.25 रुपए रह जाएगा।

सरकार जीडीपी के आंकड़ों में बराबर इसका पालन करती है क्योंकि उसे यह आंकड़ा विदेशी निवेशकों समेत सारी दुनिया को दिखाना होता है। मसलन, नए वित्त वर्ष 2017-18 में माना गया है कि हमारा जीडीपी 2016-17 के संशोधित अनुमान 150,75,429 करोड़ रुपए से 11.75 प्रतिशत बढ़कर 168,47,555 करोड़ रुपए हो जाएगा। लेकिन जीडीपी की अनुमानित वृद्धि दर 11.75 प्रतिशत में से मुद्रास्फीति की संभावित दर 5 प्रतिशत मानकर 6.75 प्रतिशत ही बताई गई है। इसे जीडीपी की वास्तविक या real विकास दर कहते हैं।

अब नए साल के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा की गई कारस्तानी को समझने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार मनरेगा (महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना) के लिए 48,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है जो अब तक सबसे बड़ी धनराशि है। पहली बात कि यह चालू वित्त वर्ष 2016-17 के संशोधित अनुमान 47,499 करोड़ रुपए से मात्र 1.05 प्रतिशत अधिक है। दूसरे अगर हम इस राशि के समय मूल्य को देखें तो यह मनरेगा में वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान खर्च किए 37,400 करोड़ रुपए के दो-तिहाई से भी कम है। हम 2008-09 के बाद के नौ सालों में मुद्रास्फीति की औसत सालाना दर को 8 प्रतिशत मानकर चलें तो 37,400 करोड़ रुपए का वास्तविक मूल्य इस समय 74,762.77 करोड़ रुपए निकलता है। इसकी दो-तिहाई रकम 49,481.85 करोड़ रुपए बनती है, जबकि इस बार मनरेगा का आवंटन 48,000 करोड़ रुपए है।

दिलचस्प बात यह है कि यह हकीकत किसी आलोचक ने नहीं, बल्कि मोदी सरकार के परम भक्त अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने कुछ दिनों पहले छपे एक लेख में उजागर की है। उन्होंने इस लेख में वित्त मंत्री की तारीफ करते हुए कहा है:

“The best commentary on the MGNREGA was by the FM when he declared that this favourite of Sonia Gandhi and the Congress Left had received the maximum ever allocation of Rs 48,000 crore. What Jaitley did not emphasise was that this was the lowest in real terms since the programme was initiated in 2008/2009; the real allocation to MGNREGA is now less than two-thirds of the Rs 37,400 made available in 2008/2009.”

हमारे वित्त मंत्री जी को अवाम व देश की वित्तीय अज्ञानता का फायदा उठाकर इस तरह सबकी आंखों में धूल झांकने से बाज़ आना चाहिए। तभी हम उनके मंत्रालय व सरकार से अपेक्षा कर सकते हैं कि देश में वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के प्रति सचमुच कुछ किया जा रहा है।

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