जब देश की 55 प्रतिशत खेती मानसून के भरोसे हो तो किसान आसमान ही नहीं, सरकार की तरफ भी बड़ी उम्मीद से देखता है। इस बार अभी तक मानसून की बारिश औसत से काफी कम रही है तो सरकार से उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ गई हैं। वैसे भी पांच साल कदमताल करने के बाद पहले से ज्यादा प्रचंड बहुमत से दोबारा सत्ता में आई सरकार से किसान ही नहीं, सारा देश बेहद ठोस कामों की अपेक्षाऔरऔर भी

पंजाब व हरियाणा के गांवों-कस्बों में लोग जुगाड़ से गाड़ियां बनाकर चला लेते हैं। लेकिन अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीतने में नाकाम रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली तो देश का बजट घाटा तक जुगाड़ से ठीक करने जा रहे हैं। इस जुगाड़ के बल पर वे नए वित्त वर्ष 2018-19 का बजट पेश करते वक्त बड़े आराम से दावा करेंगे कि उन्होंने 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.2 प्रतिशत तक सीमितऔरऔर भी

कहते हैं कि शेयर बाज़ार अर्थव्यवस्था के बारे में भविष्य की वाणी बोलता है और उसकी मानें तो हमारी अर्थव्यवस्था बम-बम करती जा रही है। साल 2017 के पहले से लेकर आखिरी ट्रेडिंग सत्र तक शेयर बाज़ार का प्रमुख सूचकांक, सेंसेक्स 28.1 प्रतिशत बढ़ा है। अगर इस रफ्तार से किसानों की आय बढ़ जाए तो वह पांच साल नहीं, 2.8 साल में ही दोगुनी हो जाएगी। लेकिन बाज़ार की आदर्श स्थितियों के लिए बनाए गए पैमाने अक्सरऔरऔर भी

हमारे वित्तीय जगत में ठगी का बोलबाला है। इसीलिए शेयरों से लेकर म्यूचुअल फंड जैसे वित्तीय माध्यमों में निवेश करने वालों की आबादी 2.5% के आसपास ठहरी हुई है और लोग अपना अधिकांश निवेश सोने व प्रॉपर्टी में करते हैं। सरकार, सेबी व रिजर्व बैंक की तरफ से वित्तीय साक्षरता की बात की जाती है। पर देश का वित्त मंत्री ही जब लोगों के वित्तीय अज्ञान का फायदा उठाकर छल करने में लगा हो तो हम कैसेऔरऔर भी

कालेधन को साफ करने की जिस वैतरणी के लिए सरकार ने देश के 26 करोड़ परिवारों को तकलीफ की भंवर में धकेल दिया, वह दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कर्मनाशा बनती दिख रही है। आईएमएफ जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संगठन तक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का अनुमान 7.6 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है, जबकि चीन का अनुमान 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है। यह केंद्र सरकारऔरऔर भी

इसे माल व सेवा कर कहिए या वस्तु एवं सेवा कर, अंततः इसे जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स) के रूप में ही बोला, जाना और कहा जानेवाला है। देश में 1986 से ही इसकी अवधारणा पर काम चल रहा है। लेकिन इसके अमल में बराबर कोई न कोई दिक्कत आ जाती है। यह आज़ादी के बाद देश में परोक्ष या अप्रत्यक्ष करों का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण सुधार है। असल में, इसके लागू होने से देश मेंऔरऔर भी

नए वित्त वर्ष 2013-14 के बजट में सिक्यूटिरीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) को लेकर वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ-साथ बजट दस्तावेजों ने भी जिस तरह का भ्रम पैदा किया है, उससे बड़े-बड़े चार्टर्ड एकाउंटेंट तक गच्चा खा जा रहे हैं। अभी हाल ही में मुंबई के मशहूर चार्टर्ड एकाउंटेंट विमल पुनमिया ने एक सेमिनार में बताया था कि शेयर बाज़ार में कैश डिलीवरी वाले सौदों पर एसटीटी खत्म कर दिया गया है। अलग से ‘अर्थकाम’ के पूछनेऔरऔर भी

वित्त मंत्री ने वित्त विधेयक 2013 के जरिए आयकर कानून 1961 में 49 नए प्रावधान जोड़े हैं। सरकार अमूमन हर साल आयकर कानून में ऐसे पचास संशोधन करती है। कभी-कभी तो यह संख्या सौ तक पहुंच जाती है। पचास का औसत मानें तो 1961 में बने इस कानून में अब तक के 52 सालों में ढाई हज़ार से ज्यादा संशोधन हो चुके होंगे। मुंबई की जानीमानी लॉ फर्म डीएम हरीश एंड कंपनी के पार्टनर अनिल हरीश कहतेऔरऔर भी

बजट का शोर थम चुका है। विदेशी निवेशकों को जो सफाई वित्त मंत्री से चाहिए थी, वे उसे पा चुके हैं। अब शांत हैं। निश्चिंत हैं। बाकी, अर्थशास्त्रियों का ढोल-मजीरा तो बजता ही रहेगा। वे संदेह करते रहेंगे और चालू खाते का घाटा, राजकोषीय घाटा, सब्सिडी, सरकार की उधारी, ब्याज दर, मुद्रास्फीति जैसे शब्दों को बार-बार फेटते रहेंगे। उनकी खास परेशानी यह है कि धीमे आर्थिक विकास के दौर में वित्त मंत्री जीडीपी के आंकड़े को 13.4औरऔर भी

जिस देश के खज़ाना मंत्री को यह न पता हो कि उसके 125 करोड़ निवासियों में से कितने करोड़पति हैं और वो इसके लिए अमीरों की सत्यवादिता पर भरोसा करता हो, उस देश के खज़ाने का भगवान ही मालिक है और तय है कि कर्ज पर उस देश की निर्भरता बढ़ती चली जानी है। दूसरे शब्दों में उसका राजकोषीय घाटा बढ़ते ही जाना है। फिर भी हमारे वित्त मंत्री या खज़ाना मंत्री पी चिदंबरम दावा करते हैंऔरऔर भी