इसे माल व सेवा कर कहिए या वस्तु एवं सेवा कर, अंततः इसे जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स) के रूप में ही बोला, जाना और कहा जानेवाला है। देश में 1986 से ही इसकी अवधारणा पर काम चल रहा है। लेकिन इसके अमल में बराबर कोई न कोई दिक्कत आ जाती है। यह आज़ादी के बाद देश में परोक्ष या अप्रत्यक्ष करों का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण सुधार है। असल में, इसके लागू होने से देश में पहली बार समान व एकल राष्ट्रीय बाज़ार बन पाएगा और राज्यों के बीच की बाधाएं खत्म हो जाएंगी।
मालूम हो कि सबसे पहले इसे लाने की घोषणा यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी चिदंबरम में वित्त वर्ष 2007-08 के बजट में की थी। उन्होंने कहा था कि इसे 1 अप्रैल 2010 से लागू कर दिया जाएगा। लेकिन भाजपा व उसकी सरकार वाले राज्यों के विरोध के चलते इसे लागू नहीं किया जा सका। अब खुद भाजपा-नीत एनडीए सरकार इसके अमल में तल्लीन है। इसके लिए 122वां संविधान संशोधन विधेयक, 2014 इस साल 5 मई 2015 को लोकसभा में पास किया जा चुका है। बाद में राज्यसभा में इसे 21 सदस्यों की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया जिसने अपनी रिपोर्ट 22 जुलाई 2015 को राज्यसभा को सौंप दी। समिति ने विधेयक में तीन अहम बदलावों का सुझाव दिया है।
एनडीए सरकार ने जीएसटी को देश भर में 1 अप्रैल 2016 से लागू करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन उसे भी पता है कि यह लक्ष्य हासिल करना अब किसी भी हाल में संभव नहीं है। एक तो राज्यसभा की प्रवर समिति के बाद इसे नए संशोधनों के साथ फिर से लोकसभा में पास करवाना होगा। हालांकि, निचले सदन में एनडीए के बहुमत को यह देखते-देखते हो जाएगा। लेकिन दिक्कत यह है कि संविधान संशोधन विधेयक होने के नाते इसे राज्यसभा में भी दो-तिहाई बहुमत से पास करवाना होगा। वैसे, खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली का मानना है कि इसमें खास दिक्कत नहीं आएगी। कांग्रेस के सुझावों को मान लिया गया है और अभी-अभी बिहार में भारी बहुमत से जीती जेडी-यू ने लोकसभा में जीएसटी विधेयक के पक्ष में मतदान किया था। उम्मीद है कि लालू का राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भी विधेयक के पक्ष में वोट दे सकता है।
जीएसटी को लाने में ताज़ा दिक्कत यह आई है कि इसके लिए बनी राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति के अध्यक्ष केरल के वित्त मंत्री के एम मणि ने बार-रिश्वत कांड में शामिल होने के आरोपों के बीच इस्तीफा दे दिया है। परंपरा यह है कि इस समिति का अध्यक्ष केंद्र से भिन्न राजनीतिक दल वाली राज्य सरकार के वित्त मंत्री को बनाया जाता है। वित्त मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक, मोदी सरकार राजनीतिक हार को भुलाकर इस समिति की अध्यक्षता बिहार के नए होनेवाले वित्त मंत्री को सौंप सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगले हफ्ते 20 नवंबर को 36 मंत्रियों के साथ शपथ लेनेवाले हैं।
वित्त मंत्रालय के उसी सूत्र का कहना है कि एनडीए सरकार सारी बाधाओं के बावजूद आश्वस्त है कि जीएसटी को अक्टूबर 2016 से लागू कर दिया जाएगा। उनका कहना था, “यह एक ट्रांजैक्शनल टैक्स है। इसलिए इसे वित्त वर्ष के पहले दिन यानी 1 अप्रैल से लागू करने की कोई बाध्यता नहीं है। यह साल में कभी भी लागू किया जा सकता है। यहां तक कि किसी महीने की किसी भी तारीख से इसे लागू किया जा सकता है।”
उन्होंने बताया कि उद्योग व व्यापार जगत के प्रतिनिधियों से विभिन्न स्तर की वार्ताएं की जा चुकी है। सभी हितधारकों की प्रारंभिक राय ली चुकी है। तमाम अड़चनों को सुलझाया जा चुका है। यहां तक इसके लिए एकीकृत सॉफ्टवेयर भी परीक्षण के अंतिम दौर में है। उनका कहना था कि जीएसटी की प्रस्तावित दर 26.89 या लगभग 27 प्रतिशत रखी गई थी। लेकिन इसे अब 20 प्रतिशत से कम और 18 प्रतिशत से ज्यादा रखने पर सहमति बन चुकी है।
उनका कहना था कि जीएसटी डेस्टिनेशन आधारित टैक्स है। यह बिक्री आधारित प्रणाली से सप्लाई आधारित प्रणाली की तरफ जानेवाली पद्धति है। मान लीजिए कि कोई दवा कंपनी डॉक्टर को अपनी दवाओं का सैम्पल देती है तब भी उस पर जीएसटी लगेगा, भले ही वो बिक्री न हो। माल कहीं भी सप्लाई हो चाहे एक कंपनी की ही अलग-अलग इकाइयों में, उस पर जीएसटी लगेगा। हां, बाद में उसका रिफंड लिया जा सकता है। टैक्स की रियायतें बदस्तूर जारी रहेंगी। लेकिन ऐसे मामलों में भी पहले टैक्स देना पड़ेगा। बाद में उसका रिफंड लिया जा सकता है। यह प्रक्रिया काफी आसान होगी और टैक्स भरने से लेकर रिफंड तक का काम ऑनलाइन हो जाएगा।
वित्त मंत्रालय के इस शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अब गुड्स को अच्छी तरह परिभाषित कर लिया गया है। शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। उनका कहना था कि इससे पहले आए 115वें संविधान संशोधन विधेयक में सेवाओं या सर्विसेज़ की स्पष्ट परिभाषा नहीं थी। अब इसे साफ करते हुए कहा गया है कि जो गुड्स नहीं हैं, उन सभी को सर्विसेज़ माना जाएगा।
आम भाषा में माना जाए तो अब कोई भी लेनदेन या ऐसा सौदा नहीं होगा जिस पर परोक्ष कर नहीं लगेगा। हां, इतना ज़रूर है कि एक्साइज, कस्टम, सेल्स टैक्स, वैट व सीएसटी जैसे बीस से ज्यादा टैक्सों का झंझट अब खत्म हो जाएगा। राज्यों का जीएसटी, केंद्र का जीएसटी और राज्यों के बीच का जीएसटी, यही तीन स्तर रह जाएंगे और इनके बीच भी स्पष्ट विभाजन रेखा होगी। सारे परोक्ष करों की सम्मिलित दर अभी औसतन 25 प्रतिशत से ऊपर है जो घटकर 20 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी। उनका दावा है कि अब जीएसटी को लागू करने में तकनीकी स्तर पर कोई बाधा नहीं रह गई। जो बची हैं, वो हैं राजनीति के स्तर की अड़चनें और मोदी सरकार पूरा लचीलापन बरतते हुए इन्हें जून 2016 से पहले सुलझा लेना चाहती है।
असल में संसद से पास होने के बाद जीएसटी विधेयक को देश के कम से कम आधे या 15 राज्यों की मंजूरी हासिल करनी होंगी। 11 राज्यों में तो एनडीए की सरकारें हैं। बाकी कम से कम चार राज्यों का समर्थन उसे पाना होगा। सरकार को यकीन है कि बिहार की नीतीश-लालू सरकार इस मामले में उनका साथ देगी। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और तमिलनाडु की जयललिता सरकार का भी समर्थन मिलने की उम्मीद केंद्र सरकार को है। उक्त अधिकारी का कहना है कि जीएसटी से राज्यों को जितने भी टैक्स का नुकसान होगा, केंद्र सरकार पांच साल तक उसकी भरपाई करने को तैयार है।