देश में विकास की जो चकाचौंध दिखाई जा रही है, उसमें चमचमाते हवाई अड्डे और हाईवे ज़रूर दिख जाते हैं। लेकिन आए-दिन किसी की छत गिर रही होती तो कई कोई पुल टूट या सड़क धंस रही होती है। 10-11 साल में देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को चमाचम हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा क्यों है कि देश के पास नए संसद भवन के अलावा दिखाने को नया कुछ नहीं है? बड़ा सवाल यह है कि इस विकास से देश के मजदूरों, किसानों और जवानों को अब तक क्या मिला? पहली मई को मजदूर दिवस के दिन यह देश करोड़ों श्रमिकों को क्या संदेश देगा? कितनी विचित्र बात है कि देश से पूंजी भी भाग रही है और कुशल श्रम भी विदेश में ठौर खोज रहा है। जो श्रमिक देश में बचा रह गया है, वो ज्यादातर अकुशल कामगार है जो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रकल्पों में काम करने के बाद उन्हीं सड़कों के किनारे या पुलों के नीचे विस्थापित हो जाता है। गांव लौटकर वो जा नहीं सकता क्योंकि खेती-किसानों में जहां एक आदमी की ज़रूरत है, वहां चार-पांच लोग लदे पड़े हैं। कितने दुर्भाग्य की बात है कि कृषि में हमारी 46% से ज्यादा श्रमशक्ति लगी हुई है। खेतिहर मजदूर इतना भी नहीं कमा पाता कि परिवार के साथ सम्मानजनक जीवन जी सके। श्रम और पूंजी का भयंकर असंतुलन छा गया है देश में। अब बुधवार की बुद्धि…
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