कैग की अंतिम रिपोर्ट में रिलायंस पर गाज नहीं

नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (कैग) ने कृष्णा गोदावरी बेसिन में पूरा का पूरा डी-6 ब्लॉक रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास छोड़ने के लिए पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय की खिंचाई की है और कहा है कि यह कंपनी के साथ उत्पादन में हिस्सेदारी के अनुबंध (पीएससी) के विरुद्ध है। यह बातें कैग ने हाइड्रोकार्बन पीएससी पर गुरुवार को संसद को सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट में कही हैं। लेकिन इसमें डी-6 ब्लॉक पर रिलायंस द्वारा 2004 के प्रस्तावित 2.4 अरब डॉलर के खर्च को 2006 में बढ़ाकर 8.8 अरब कर दिए जाने पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।

कैग ने इस बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट में केजी बेसिन के डी-6 ब्लॉक के विकास पर होने वाले खर्च के बारे में कहा है कि अनुमानित खर्च को मंजूरी देने का अर्थ यह नहीं है कि परियोजना की वास्तविक लागत पर मुहर लगा दी गई है। उसने कहा है कि पक्की मंजूरी वास्तविक लागत के ऑडिट के बाद ही दी जा सकती है। माना जा रहा है कि इससे परियोजना लागत संबंधी आलोचनाओं से कंपनी को कुछ राहत मिली है।

यह रिपोर्ट देश में कच्चे तेल के क्षेत्र में विभिन्न कंपनियों और सरकार के बीच किए गए उत्पादन भागीदारी अनुबंध (पीएससी) के कार्यप्रदर्शन पर तैयार की गई है। रिलायंस ने इस रिपोर्ट पर आधिकारिक रूप से इस आधार पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है कि उसने अभी तक यह रिपोर्ट देखी नहीं है।

रिपोर्ट में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय और उसके तकनीकी प्रकोष्ठ हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) के इस इस निर्णय पर आपत्ति खड़ी की गई है, जिसके तहत उसने रिलायंस इंडस्ट्रीज को बंगाल की खाड़ी स्थित डीडब्ल्यूएन 98.3 यानी केजी डी-6 ब्लॉक के पूरे 7645 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र को कंपनी के हवाले रहने दिया। रिलायंस ने 2001 में इस क्षेत्र में धीरुभाई एक और धीरुभाई 3 में गैस खोज ली थी। कैग की राय में उत्पादन में हिस्सेदारी के अनुबंध के तहत ज्ञात तेल गैस के स्रोत वाले क्षेत्रों को छोड़ रिलायंस को ब्लॉक का एक चौथाई हिस्सा लौटा छोड़ देना चाहिए था।

कुल मिलाकर निवेशक समुदाय ने कैग की रिपोर्ट को रिलायंस पर कम कठोर पाया है। वैसे भी इसके इतने हिस्से लीक होकर मीडिया में आ चुके हैं कि बाजार इसे डिस्काउंट कर चुका है। यही वजह है कि रिपोर्ट आने के बाद रिलायंस इडस्ट्रीज के शेयर 2.3 फीसदी बढ़ गए। ब्रोकरेज फर्म एमएमसी ग्लोबल सिक्यूरिटीड के रणनीतिकार व रिसर्च प्रमुख जगन्नाधम तुनगुंटला का कहना है, “रिलायंस के नजरिए से रिपोर्ट उतनी गंभीर है जितना कि डर था।”

कैग ने संसद में सौंपी एक अन्य रिपोर्ट में एयर इंडिया के विमान खरीद सौदे तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि कर्ज के सहारे 111 विमान खरीद सौदे का करार इस इस सरकारी एयरलाइन के लिए ‘संकट को दावत देने’ जैसा था। कैग ने एयर इंडिया व नागर विमानन मंत्रालय से लेकर सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि लगता यह सौदा ‘विक्रेता प्रेरित’ था। इससे तत्कालीन विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल पर विपक्ष के हमले शुरू हो गए हैं। पटेल यह कहते हुए खुद का बचाव कर रहे हैं कि उन्होंने जो भी किया, वह उनका अकेले का नहीं, बल्कि सरकार का सामूहिक फैसला था।

कैग ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के विलय को ‘गलत समय में’ किया गया विलय करार दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यह संकट को दावत थी और इससे नागर विमानन मंत्रालय, सार्वजनिक निवेश बोर्ड और योजना आयोग के कान खड़े हो जाने चाहिए थे।’’ कैग ने विमानन कंपनी के प्रबंधन के संबंध में सरकार को पूरी तरह से व्यावहारिक रुख अपनाने का सुझाव दिया।

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